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Showing posts from June, 2020

"नजर से नजर मिली है"

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नजर से नजर जब से मिली है  फिर से दर्शन की प्यास लगी है दिन  सुहाने हो गए मोहन मेरे जब से श्याम की एक झलक मिली है आंखों में काजल झीना लगा है वो नैनों से बातें प्यारी लगी है  उठाकर नजरें जब देखता है मुझको तो यह दुनिया भी बैरन लगने लगी है मोर मुकुट कान्हा के शीश सजो है काठ की बंसी अधर धरो है मधुर मुसकावे मधुर बाजावे श्याम युगल सरुप में मनभावन लगो है। कूल से जब फूल किशोरी लेने लगी हैं यमुना भी चरण पखारन लगी हैं धन्य भाग्य भानुजा के आज राधे भानुजा का भानुजा चरणामृत लेने लगी है       भानुजा शर्मा📝

" बचपन लौट आया है"

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घिर आये हैं बादल, या बचपन लौट आया है छतों का वो पानी भरना ,गलियों में नाव चलना याद आया है लगता है आज बचपन फिर से लौट आया है।। चलने लगी है मंद हवायें, बादलों का झुंड आया है। बरसने लगी है रिमझिम बरखा ,पैरों का छप छपाना याद आया है आज फिर से वो जमाना याद आया हैं।। चिड़िया की चहचह सुनी आज,मोर नाचने आया हैं पेड़ों में आज पके जामुन देख जाने क्यों फिर से  मन ललचाया है लगता है आज बचपन फिर से लौट आया है भीनी खुशबू धरा की लगता है इत्र से छिड़काव कराया है बरसों बाद फाड़े हैं आज पन्ने मैंने,वो नाव बनाना याद आया है समझदारी की उम्र में,वो नासमझ बचपन याद आया है बच्चों की वो टोली देख, मन आज भर आया है मुझे भी आज मेरा वो गुजरा जमाना जाने क्यों याद आया है। लगता है भानु आज बचपन फिर लौट आया है।               भानुजा शर्मा📝

"बातें"

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लिखती हूँ वो जो कहना पाई थी  जानते हो आदतें जुदा है तुम्हारी सब से  जाने क्यों फिर भी घुले मिले से रहते हो।  बहुत सी बातें होती है तुम्हारे मन में  पर कह ना  तुम किसी से पाते हो।। बात करते करते ख़ामोश तुम हो जाते हो जाने क्यों फिर हल्का सा तुम मुस्काते हो। बहुत से दर्द छुपे है शायद तुम्हारे सीने में इसलिए ही तो अक्सर तुम ख़ुश नज़र आते हो।। वाकिव तो नही में तुम्हारी तकलीफों से जाने क्यों तुम हमदर्द नजर आते हो। कुछ तो बताओ कभी हमे खुद के बारे में जाने क्यों तुम सिर्फ तुम हमे जानने मे लगे रहते हो। ।     भानुजा शर्मा📝

"किनारा हो गए"

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*हमारे ही शहर में कर रहे थे वो खुद की वफाओ का जिक्र...... निगाहें हम पर क्या पड़ी वो खामोश हो गए। * एक वक्त था जब आते जाते वो मिलते थे हमसे  किनारों पर कहीं ..... देखते ही देखते वो हमसे किनारा हो गए। *वो अक्सर रूठ कर भी कहते थे हमसे जरा संभल कर जाना जाने वो कैसे अब इतने बेदर्द हो गए। * इंसाफ भी तो देखो उनका ,अदालत लगी भी तो उनके शहर में.... मेरे गवाह  मेरे तब  खिलाफ हो गए। बड़े शान से कहते फिरते थे जमाने में हमने नही की कभी मोहब्बत.. नाम सुन कर वो हमारा भानु आज चुप हो गए।          भानुजा शर्मा📝

"पायो बनवारी"

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क्यों बैठी क़दम तन प्यारी का खोया है बनवारी। घर वार हम छोड़ के आई शरण में लो अब प्यारी।। ढूंढत ढूंढत हारे किशोरी कहां गए हो मुरारी। यमुना तट पर देख हम आई ना मिलो मुझे त्रिपुरारी।। पद चिन्ह खोजत चले किशोरी  तो पाई है राधा प्यारी। चरण कमल पूजत हम आई किशोरी मिलवा ओ गिरधारी।। भूल गई हम अपने विरह को रोवत देखी जब राधाप्यारी।  देख तो हम सब कुंजन आई ना दर्शन दियो  बनवारी।। मिलकर रुदन करत सखिया गावत गोपी गीत सब न्यारी। भानुजा शरण भानुजा के आई प्रगटे तब निधिवन बिहारी।।                   भानुजा शर्मा📝

" उलझन बहुत सारी है"

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सर पर वजन नही हैं आज मेरे। पर मन मेरा जाने क्यों भारी हैं।। नजर आते हैं मुझे कई रास्ते मेरे। पर नजर सिर्फ मंजिल पर सारी है।। थकी नही हूँ अभी तन से मेरे। जान क्यों अब मन से थकान भारी है।। चैन नही मिलता मुझे जहन में मेरे। लगता हैं ख़्यालो मे ख्वाहिश बहुत सारी है।। वफादार मिला ही नही भानु मन को मेरे। लगता हैं मेरे शहर में बेवफ़ाओ की भीड़ सारी है।।   भानुजा शर्मा 📝

" कसूर"

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मोहोब्बत क्या हुई कसूर हो गया क्या कह दिया दिल का हाल  तो घर में बबाल हो गया बहुत कहती थी तुम तो  हमदर्द हो मेरी... तुमसे सच क्या कहा हमने तुम्हारा दिल बेदर्द हो गया नुक्स क्या निकाले हमने  तुम्हारे जिगरी में... कच्चा चिट्ठा हमारा सरेआम हो गया तुम्हारी गलतियां तो सब राज हो गई.. सिर्फ हमारी ही क्यों सवाल हो गई। तुम भी तो कहती हो हर बात अपने जिगरी से.. हमने किसी से कुछ कहा तो जुर्म हो गया कहना कुछ नही चाहती मै तुम से कह लो कुछ भी .... भानु की यही खामोसी भारी होगी तुम्हारे तंजो से।         भानुजा शर्मा

" पिता"

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सब कह रहे है पितृ दिवस पर कुछ तो लिखो- असमंजस में थी क्या कहूं या ना कहूं क्योंकि मेरे जीवन में पिता एक ऐसी आलौकिक की शक्ति है किसका सिर्फ और सिर्फ एहसास किया जा सकता है उसको बयां कर पाना असंभव है अपार स्नेह हृदय में भर कर भी थोड़े सख्त बने रहना। यह कदापि सरल तो नहीं है अक्सर हम अपने पिताजी को घर से बाहर देखते हैं और सोचते कि इनको हमारी कदर ही नहीं है जरा गौर कीजिए समझे वह घर से बाहर है कड़ी धूप में मेहनत करते हैं कोई भी कार्य करते तो किसके लिए सिर्फ आपके लिए, आपके भविष्य के लिए ,आपके परिवार के लिए,फिर उनके बारे मे यह कहना तो अनुचित ही होगा। तुम्हारे जन्म पर जितनी खुशी तुम्हारी मां को हुई उससे भी ज्यादा खुशी तुम्हारे पिताजी को हुई पर शायद जाहिर ना कर पाए होंगे। पिता है तो दुनिया के सारे सपनों पर हमारा हक है पिता है तो सपने अपने हैं। पिता सार्थक है और मेरे पास सार्थक शब्द नहीं जिनसे मैं उनकी विवेचना कर सकू। एक गुरु भी अपने शिष्य का पिता होता है जिनका सदैव सम्मान करना चाहिए।उनको कभी दुःखी नही करना चाहिए। एक पिता अपने जीवन की संपूर्ण पूँजी अपने बच्चों पर लगा देता है। दुर्भाग्यवश वही बच्चे ...

"जल विहार कर आवे"

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चलो किशोरी आज जल विहार कर आवे। जलविहार कर आवे प्यारी भानुजा से मिल आवे बाट ताकत होगी हमारी,चलो यमुना से मिल आवे कुंजन कुंजन विहरे बहुत है आज यमुना तट देख आवे।। ताक रही गोपी हमको पनधट से,चलो उनसे बतियाँ आवे नाम राधा तुम्हरो प्यारी,आज प्रेम की धारा से मिल आवे लहरा रहे कोमल कमल यमुना मे,मन निरखत सुख़ पावे धोऊ जल से चरण तुम्हारे,चरणामृत लेत मन सुख पावे दर्शन दो राधा वल्लभ अब भानु मन को चैन ना आवे वाट निहारी तुम्हरी मन मंदिर में तुम बिन मन दुःख पावे         भानुजा शर्मा📝

" बैकुंठ और वृंदावन"

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ना भावे मोहे बैकुंठ नारायण। मोये  तो भावे मेरो वृन्दावन।। बैकुंठ में चापत श्री चरण तुम्हारे यहाँ श्रीजी के चापत तुम नारायण। अष्ठ पहर सेवा में श्री रहती। यहाँ रहवत तुम नारायण। ब्रह्मा बने रहते तुम वहाँ स्वामी। यहाँ ब्रह्मा सखा हमारो नारायण।। हाथ जोड़ वहां खड़ी रहे गोपी। यहां तुम्हें नाच चावत नारायण।। वहां प्रेम को पाठ पढ़ावत तुम हो। यहाँ गोपी  प्रेम सिखावत नारायण।।   भानुजा के प्राण है वृषभानु दुलारी। प्रणन के प्राण तुम हो नारायण।।           भानुजा शर्मा📝

"दर्शन दो राधा माधव अब"

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             "  कुंजन में"  करत रास राधा माधव कुंजन में गोपियन मध्य वो ठाड़े हैं। सबके पास कृष्ण रास में सोचत  कृष्ण सिर्फ हमारे हैं।। आयो मद जब गोपियन  में अंतर्ध्यान युगल हमारे हैं। विहरत राधा माधव कुंजन में जो गोपियन सो प्राणन प्यारे हैं।। ढूंढत गोपी माधव को कुंज कुंज में कहां आज छुपे प्राणधन हमारे हैं। पूछत गोपी पीपल वृक्ष सो तुम तन आये कृष्ण हमारे है।। का पूछो सखी वृक्षन सो ये पुरुष जाती के न्यारे है। का जाने ये बात प्रेम की सब छलिया के सखा प्यारे है।। पूछत मृग सो एक सखी  दूर दूर तक तुम भागत हो। देखो का मृग सी आखंन वारो जो राधा प्राणन प्यारो है।। पुलक रही हो काहे धरा तुम का श्याम को स्पर्श पायों है। देखो होये तो बता दो सखी अब निकरो प्राण हमारों हैं।। पूछत सखी तुलसी रानी सो तुमने तो ठकुरानी पद पायो हैं। तुम बिन करत ना श्याम भोजन हूँ का देखो ब्रजराज हमारो है।।  सर्वस्व वार बैठी भानु  वृक्ष तन  गावत गोपी गीत न्यारो हैं।  दर्शन दो राधामाधव अब  चाहे ले लो प्राण हमारो हैं।।       भानुजा शर्...

"कुंजन में दोनों"

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बैठत कुंजन में सखी दोऊ जन निरखत छवि सुहानी कोऊ नही सखी कुंजन में अब अब कौ महिमा कू जानी।। वीणा बजावत आज किशोरी गावत हैं आज युगल जोरी ब्रह्मा आज चरनन  में बैठे मांगते हैं चरण रज तोरी।। प्रेम रस सुन सखी सब आई सुनी तुलसी फूलें ना समाई। खोले नेत्र जब किशोरी ने ब्रह्म को अपने चरणन पाई ।। स्पर्श पाय लता राधे को पुष्प मकरंद लुटावन आई।  सर्वस्व लुटाए भानुजा भानुजा को देखत आज सखी सब मुस्काई।।         भानुजा शर्मा📝      

"दूर रहता था वो"

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घिर आये है ये बादल दुःख का अपार समुंदर देखकर बिछड़ गए है अपनों से दर्द अपनों का देख कर देखो बरस रहे है दूर कहि अपनों से अपनों में अपना क़ातिल देखकर।। मुस्कुराता ऎसे था वो जैसे दुनिया सारी ख़ुशी हो उसके पास...... खुद के सिवा कोई भी नही जानता की कितना दर्द छुपाये बैठ था खुद के पास दर्द देते हैं अपने अक्सर कहता था वो... इस लिए ही खुद से दूर रहता था वो।।               भानुजा शर्मा📝

" जोगन हो गई तेरी सांवरिया"

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  मैं तो जोगन हो गई श्याम मैं तो नाचूंगी   नाचूंगी हरषाऊंगी.....  मैं तो  जोगन हो गई श्याम मैं तो नाचूंगी।   1.छोड़ी मैने यारी सारी... मैं तो तुझे ही यार बनाऊगी 2.ना भावे मोहे झुठी दुनिया मैं तो तुझ में ही रम जाऊगी 3.साज सुनें मैने सबरे जगत के तेरो ही नाम  बस में गांऊगी। 4.आवत जावत कुंज गली में  मैं तो तेरी ही बाट निहारुगी।। 5.रंगवाई मैने श्याम चुनरिया मैं तो खुद भी अब रंग जाऊंगी 6.मन में बस गई तेरी सुरतिया। मैं तो निरख निरख सुख पाऊंगी ।। 7.होगई जोगिन भानु  सांवरिया मैं तो वृंदावन अब को जाऊंगी ।।             भानुजा शर्मा🙏

" भोजन करत लाड़ली लाल"

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 पावत प्रसाद निज कुंज में दोनों  सखियां निरखन लागी हैं ललिता सखी चमर डुलावत विशाखा सेवा में ठाडी है।। मोर मोरनी नाचत हैं सम्मुख वीणा की धुन न्यारी हैं। लता करत स्वयं पुष्प वर्षा ध्याय जिन्हें शुक मुनि ज्ञानी है प्रसाद पाऔ पहले किशोरी निवेदन करत बनवारी है स्वयं हाथन सो पवावत लला देख छवि भानुजा  बलिहारी है।। पायो प्रसाद किशोरी ने अब पावत निधिवन बिहारी है। हाथन सो मोदक पवाए किशोरी प्रफ़ुल्लित मंजरीगण सारी है।। कहत मणि मंजरी सखियन सो युगल की शोभा आज न्यारी है। बीड़ा प्रसाद लेके मै जाउ आज यह लालसा मन में भारी है। चमर अब मोये डुलावन दो सखी निकट से निरखु या बनवारी है  मीठी बतियां करत मनमोहन। सर्वस्य युगल पर भानु  को बलिहारी है।।          भानुजा शर्मा🙏

" शरण में लीजै"

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एक विरह तो सह लू मै कान्हा दो दो सहे ना जाये । एक खुद को और दूजो तुमरो मन भीतर ना समाये।। कृष्ण कृष्ण करत राधिका  स्वयं कृष्ण हो जाये। तब जलत राधिका की विरह में अश्रु अखियन सो बहाये।। पूछत गोपियन सो कहा गई राधा कुंजन देखन जाये। आवत सुध जब स्वयं की तब कृष्ण विरह में जल जाये।। भानुजा भानुजा के तट पर बैठी छवि माधव की नजर आये। भानुजा रोवत भानुजा के संग कौंन अब माधव को आये।। रूप देख किशोरी को भानु चरण पकड़ हा हा खाये। शरण में लीजै किशोरी अब तो विरह हम सो सयो ना लाये।।                 भानुजा शर्मा📝 

" निरखत है गुरुदेव"

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चलत मंद पुरवाई है कुंजन में कृष्ण कन्हाई है नाचत गावत है गोपीजन आज राधा-कृष्ण बन आई है। निरखत रूप कृष्ण कृष्ण को यह छवि सबके मन भाई है पहचान ना पाई स्वयं गोपी का कौन कृष्ण कन्हाई है।। बैठे दोऊ एक सरूप में.... बंसी अधर सजाई है। दोनों के सिर आज मोर मुकुट है आरती करण भानु सखी आई हैं निरखत हैं गुरुदेव युगल को... किशोरी मंद मुस्काई हैं कहत श्याम आज गुरुवर से... शुक सखी बन निरखन को आई है।।             भानुजा शर्मा

" कुंजन में आज श्याम"

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चलो सखी कुंजन में.... जहा विहरत श्यामा श्याम। भोरी राधा मेरी बैठी.... अठखेली करत है श्याम।।   दोउ गलवइया डारे बैठे सिंहासन....  करत शुक मुनि ध्यान झूलन बैठी किशोरी झूला और झुलावत श्यामा श्याम।।  हिल मिल सखी मुस्कावत श्याम पर और देखत है आज घनश्याम। इंद्रधनुष की छटा लगे फीकी जब चमकत किशोरी चरणन की रेती आज बरसावत प्रेम रस किशोरी... जहां भीगत वैष्णव जन सखी तोरी रूप निहारत थकत नही  अखियां  पर लगत आज पलकन बेरी।। मागत है भानुजा से भानुजा तोरी दर्शन देओ किशोरी मोरी चरणन में मोये सदा राखियो लगाउ शीश मैं चरण रज तोरी।।             भानुजा शर्मा🙏📝

" शासन"

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हरी-भरी खुशहाल धरती पर आज विपदा की घड़ी भारी है चारों ओर आज लाशे .... और घर मे बैठी दुनिया सारी है। सुला देते हैं हम भूखे बच्चों को... फरमाइश वो भोजन की करते हैं तपते हैं दिन भर धूप में.. वो ए. सी में बैठे रहते हैं।।  वो चलते हैं कारों से..  हम पैदल सफर तय करते हैं उठाता है बोझ मेरे घर का छोटा बच्चा भी उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं। इतनी बड़ी इस महामारी में... परीक्षा वो करवाएंगे  चाहे मर जाए दुनिया सारी पर पपेर वो लिखवाएगे। बहुत हुआ ये अंधा शासन.. कब अंधकार मिटायेंगे। आस लगाए बैठी भानु रामराज कब आएंगे।।               भानुजा शर्मा

" डिजिटल शिक्षा"

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जैसा की हम सब अवगत है हमारी सरकार आज कल डिजिटल शिक्षा पर जोर दे रही है या कहे डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दे रही है। ये वाकई सही है क्या ?और सही भी है तो क्या हमे हमारी परंपरागत शिक्षा को छोड़ देना चाहिए? पूर्ण रूप से डिजिटल शिक्षा  पर निर्भर होना मैं तो गलत मानती हूं उसका कारण ये है की जब एक विद्यार्थी स्कूल और कॉलेज जाते है तो नये विद्यार्थियों के और नए शिक्षकों के संपर्क में आता है। कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता है  खेलकूद जैसी गतिविधियों में भाग लेता है जिसे उसका शारीरिक विकास नहीं  उसका मानसिक विकास भी अच्छी तरह से होता है। डिजिटल शिक्षा से मेरे दृष्टिकोण से सहयोग करने की भावना तो पूर्ण रूप से समाप्त हो ही जाती है जब विद्यार्थी अपने सहपाठियों से नहीं मिलेगा तो सहयोग करने की भावना का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। हंसना, बोलना ,खेलना ,कूदना,मित्र, ये सारे बातें सिर्फ और सिर्फ शब्द बनकर ही रह जाएंगे डिजिटल शिक्षा होने से  इनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा।  जब बच्चे अकेले रहेंगे तो मानसिक तनाव जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ेगा। और तनाव में आकर गलत कदम भी उठा सकते हैं आत...

वापस आजाओ

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छोड़कर गए क्यो हमको कुछ कारण होगा। या तो तुम होते  या जीवन ही ना होता। एक तो खत लिखते तुम धीरज बधाने को क्या तुम्हें हमारा ध्यान आया ना होगा चलो मान लिया लिखा भी होगा तुमने खत शायद डाकिया डगर भूल गया होगा। किस-किस की व्यथा कहूं तुमसे मैं किशोरी का तो भान तुम्हे आया होगा कान्हा कान्हा पुकारती है गोपियां हमारे प्रेम का ध्यान तुम्हें आया तो होगा किशोरी के अश्रु से बना सरोवर  बादलों ने तुमसे कहा तो होगा बहुत हुई ये विरह वेदना  अब तो तुमको आना होगा। किशोरी के बिन आधे हो कृष्णा पूर्ण रूप का ध्यान आया तो होगा वापस आजाओ मन मोहन  अब तो दर्शन भानु को देना होगा    भानुजा शर्मा🙏