" शासन"
हरी-भरी खुशहाल धरती पर
आज विपदा की घड़ी भारी है
चारों ओर आज लाशे ....
और घर मे बैठी दुनिया सारी है।
सुला देते हैं हम भूखे बच्चों को...
फरमाइश वो भोजन की करते हैं
तपते हैं दिन भर धूप में..
वो ए. सी में बैठे रहते हैं।।
वो चलते हैं कारों से..
हम पैदल सफर तय करते हैं
उठाता है बोझ मेरे घर का छोटा बच्चा भी
उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं।
इतनी बड़ी इस महामारी में...
परीक्षा वो करवाएंगे
चाहे मर जाए दुनिया सारी
पर पपेर वो लिखवाएगे।
बहुत हुआ ये अंधा शासन..
कब अंधकार मिटायेंगे।
आस लगाए बैठी भानु
रामराज कब आएंगे।।
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