" शरण में लीजै"
एक विरह तो सह लू मै कान्हा
दो दो सहे ना जाये ।
एक खुद को और दूजो तुमरो
मन भीतर ना समाये।।
कृष्ण कृष्ण करत राधिका
स्वयं कृष्ण हो जाये।
तब जलत राधिका की विरह में
अश्रु अखियन सो बहाये।।
पूछत गोपियन सो कहा गई राधा
कुंजन देखन जाये।
आवत सुध जब स्वयं की
तब कृष्ण विरह में जल जाये।।
भानुजा भानुजा के तट पर बैठी
छवि माधव की नजर आये।
भानुजा रोवत भानुजा के संग
कौंन अब माधव को आये।।
रूप देख किशोरी को भानु
चरण पकड़ हा हा खाये।
शरण में लीजै किशोरी अब तो
विरह हम सो सयो ना लाये।।
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