" पिता"
सब कह रहे है पितृ दिवस पर कुछ तो लिखो-
असमंजस में थी क्या कहूं या ना कहूं क्योंकि मेरे जीवन में पिता एक ऐसी आलौकिक की शक्ति है किसका सिर्फ और सिर्फ एहसास किया जा सकता है उसको बयां कर पाना असंभव है अपार स्नेह हृदय में भर कर भी थोड़े सख्त बने रहना। यह कदापि सरल तो नहीं है अक्सर हम अपने पिताजी को घर से बाहर देखते हैं और सोचते कि इनको हमारी कदर ही नहीं है जरा गौर कीजिए समझे वह घर से बाहर है कड़ी धूप में मेहनत करते हैं कोई भी कार्य करते तो किसके लिए सिर्फ आपके लिए, आपके भविष्य के लिए ,आपके परिवार के लिए,फिर उनके बारे मे यह कहना तो अनुचित ही होगा। तुम्हारे जन्म पर जितनी खुशी तुम्हारी मां को हुई उससे भी ज्यादा खुशी तुम्हारे पिताजी को हुई पर शायद जाहिर ना कर पाए होंगे। पिता है तो दुनिया के सारे सपनों पर हमारा हक है
पिता है तो सपने अपने हैं। पिता सार्थक है और मेरे पास सार्थक शब्द नहीं जिनसे मैं उनकी विवेचना कर सकू। एक गुरु भी अपने शिष्य का पिता होता है जिनका सदैव सम्मान करना चाहिए।उनको कभी दुःखी नही करना चाहिए।
एक पिता अपने जीवन की संपूर्ण पूँजी अपने बच्चों पर लगा देता है। दुर्भाग्यवश वही बच्चे अपने पिता को जरूरत के वक्त समय तक नहीं दे पाते।मुझे वो किस्सा अक्सर याद आता हैं जब बच्चा छोटा होता है और अपने पिता से कई बार पूछता है इस पेड़ पर कौन बैठा है और पिता बार-बार उसको बताता है कि बेटा पेड़ पर तोता बैठा है यही बात बच्चा बार-बार पूछता है और पिता हर बार उसको जवाब देता है। लेकिन वही पिता जब वृद्ध होता है उसकी नेत्र ज्योति कमजोर होने पर अपने पुत्र से पूछता है बेटा कौन है क्या है वही पुत्र उन पर चिल्ला कर कहता है कि बार-बार एक ही सवाल मत पूछा करो। क्यों उस पिता ने तो कभी गुस्सा नही किया उसके सवालों पर। बड़ी अजीब विडंबना है इस दुनिया की जो मेरी समझ से ही परे है।
इतना ही कहना चाहूंगी आपके पास पिता है मंदिर में या कही भी भगवान को खोजने जरूरत नही बस अपने पिता की इज्जत कीजिए उनका सम्मान कीजिए
ऐसा माना जाता है कि जन्म देने वाला व्यक्ति ही पिता होता है लेकिन आचार्य चाणक्य के अनुसार पांच प्रकार के पिता बताए गए हैं-
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैचे पितर: स्मृता:।।
इस श्लोक का अर्थ है कि संसार में पांच प्रकार के पिता बताए गए हैं। जन्म देने वाला, शिक्षा देने वाला, यज्ञोपवित आदि संस्कार करने वाला, अन्न देने वाला और भय से बचाने वाला भी पिता ही कहा गया है।
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