"कुंजन में दोनों"
बैठत कुंजन में सखी दोऊ जन
निरखत छवि सुहानी
कोऊ नही सखी कुंजन में अब
अब कौ महिमा कू जानी।।
वीणा बजावत आज किशोरी
गावत हैं आज युगल जोरी
ब्रह्मा आज चरनन में बैठे
मांगते हैं चरण रज तोरी।।
प्रेम रस सुन सखी सब आई
सुनी तुलसी फूलें ना समाई।
खोले नेत्र जब किशोरी ने
ब्रह्म को अपने चरणन पाई ।।
स्पर्श पाय लता राधे को
पुष्प मकरंद लुटावन आई।
सर्वस्व लुटाए भानुजा भानुजा को
देखत आज सखी सब मुस्काई।।
भानुजा शर्मा📝
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