" निरखत है गुरुदेव"

चलत मंद पुरवाई है
कुंजन में कृष्ण कन्हाई है
नाचत गावत है गोपीजन
आज राधा-कृष्ण बन आई है।

निरखत रूप कृष्ण कृष्ण को
यह छवि सबके मन भाई है
पहचान ना पाई स्वयं गोपी का
कौन कृष्ण कन्हाई है।।

बैठे दोऊ एक सरूप में....
बंसी अधर सजाई है।
दोनों के सिर आज मोर मुकुट है
आरती करण भानु सखी आई हैं

निरखत हैं गुरुदेव युगल को...
किशोरी मंद मुस्काई हैं
कहत श्याम आज गुरुवर से...
शुक सखी बन निरखन को आई है।।

           भानुजा शर्मा

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