"बातें"
लिखती हूँ वो जो कहना पाई थी
जानते हो आदतें जुदा है तुम्हारी सब से
जाने क्यों फिर भी घुले मिले से रहते हो।
बहुत सी बातें होती है तुम्हारे मन में
पर कह ना तुम किसी से पाते हो।।
बात करते करते ख़ामोश तुम हो जाते हो
जाने क्यों फिर हल्का सा तुम मुस्काते हो।
बहुत से दर्द छुपे है शायद तुम्हारे सीने में
इसलिए ही तो अक्सर तुम ख़ुश नज़र आते हो।।
वाकिव तो नही में तुम्हारी तकलीफों से
जाने क्यों तुम हमदर्द नजर आते हो।
कुछ तो बताओ कभी हमे खुद के बारे में
जाने क्यों तुम सिर्फ तुम हमे जानने मे लगे रहते हो। ।
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