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Showing posts from May, 2020

" विरह"

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कृष्ण जन्म मथुरा चले गए तो सारा वृंदावन विरह व्याकुल था एक सखी ने किशोरी जू की वेदना देख कृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वापस वृंदावन आ जाओ और कहती है जब से गए हो तुम मनमोहन चैन ना मन को  पल भर को। क्यों आवत नाही तुम मनमोहन एसो का अपराध भयो हम सो।। सुध बुध ना रही गोपियन की रोवत है दिन-रात नको। का हाल कहूं किशोरी को जिन्हें ध्यान नहीं अपने तन को।। अष्ट सखी सेवा में जिनकी भूल गई अपने आँशू को। प्रेम सरोवर बनो अश्रु सो देखते ही मन होय दर्द सो।। हटा दये नीले पुष्प बगिया सो कारो तो हम देखत नाही रह रह याद तुम्हारी आवै यह प्राण तन से निकलत नाही।। सब ही डाकिये भूले डगर कू हम तक एक पहुंचना पायो। का खत्म है गई तुम्हारी स्याही जो एक खत हम तक ना आयो।। भेजे ऊधो ज्ञान सिखाने क्या प्रेम को ध्यान तनिक ना आयो प्रेम से बड़ो ना ज्ञान  जगत को यह तुम्हारी समझ ना आयो।। का का वर्णन करु कन्हैया  मैं अब बस पडु तुमरे पइया अब कछु कह ना पाए भानुजा लौटो अब वृंदावन माही  ।।

" किशोरी प्यारी"

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 आयो वो पितांबर धारी बांध के कमरिया कारी  सुनियो मेरी राधा प्यारी ये छलिया है मन को भारी।। सखियन के याने वस्त्र चुराए माखन तो यानी घरे घरे खाए फोड़ी मटकीयाँ नित्य प्रति याने तब से ये माखन चोर कहाये।। होगो तू ब्रजराज कन्हैया शासनेश्वरी  मेरी राधा प्यारी   सखिन मध्य बैठी किशोरी तेरा ग्वालन को टोल भारी । विहरत राधाबल्लभ मनमोहन कुंजन में कुंजन की शोभा न्यारी  एक मुरली दोउ फूकत अधरसो भूली भानुजा सुध बुध सारी निरखत यह छवि भानु निरंतर युगल छवि बलिहारी।। भानुजा शर्मा

" मत कैद करो ना"

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पिंजरे में कैद मत करो ना अब तो उड़ जाने दो ना जानती हूँ पिंजरा सोने का है पर मुझे खुले आसमान में उड़ने दो ना।। ख्वाबों में बुनती हूं मैं मेरे ख्वाब भरे सपने अब तो उन्हे साकार करने दो ना घर ही घर में रहती हूँ मैं मुझे थोड़ी तो दुनियां देखने दो ना सारी जरूरते पूरी होती हैं मेरी पिंजरे में भलेही मुझे सुख की तलाश में घूमने दो ना खोल के पिंजरा उड़ चली है भानु अब अपने मंजिल की तलाश में।।     भानुजा शर्मा

"श्रृंगार करत श्याम"

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श्रृंगार करत आज कृष्ण राधे को ..... नीली चुनरी आज शीश सजाई है गले में मोतियन माला .. और शीश चंद्रका कृष्ण मन भाई है।। बेनी गुथी अपने हाथों से..... और फूलों से सजाई है। अखियों में झीना कजरा और लाली ब्रजराज ने लगाई है।। कमर में करधनी बाधें..... चूड़ी रंग रंगीली पहनाई है मेहंदी हाथों में लगा के.... महावर चरणों में श्याम ने लगाई है।। भेंट में नूपुर लाए श्याम शीश झुका के प्रिया जू को पहनाये है निरखत छवि " भानुजा " भानुजा की अखियां जल सो भर आई है।।       भानुजा शर्मा

"प्रिया जू"

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उठत बैठत यहां राधे को नाम है सबके मन मंदिर मे श्यामा श्याम है धाम होये भलेही कान्हा तेरो .... पर चलत यहाँ राधे को नाम है।। गोवत है बेनी जहां कृष्ण प्रिया जू  श्रृंगार करत फूलन सो..... रास देखन ब्रजराज को आज शिव जी हू आज सखी बन आई है। बीड़ा चवाबत जहां श्यामा श्याम जू लगत अधरन पर  लाली है निरखत है यह छवि भानु सखी हैं।। तो आवत अखियन सो पानी है।। छोटी सी विनती सुन लीजै दासी को अब शरण में लीजै नही भावत ये झूठे बंधन..... अब तो प्यारी भानु को अपनों कर लीजै।।            भानुजा शर्मा

" मुझे गुस्सा आता हैं"

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कोई झूठ बोले तो मुझे गुस्सा आता है चाहे वह मेरा बुरा नहीं चाहता है सच बोला करो भाई इसमें किसी का क्या जाता हैं आदतें सबकी जुदा-जुदा होती हैं इसी में अच्छाई तो किसी में बुराई होती है क्यों निकालते रहते हो सब में खामियां क्या खुद में सिर्फ और सिर्फ  अच्छाई सिर्फ होती हैं बढ़ते कदम क्यों किसी के रुकते हो आगे बढ़ना है तो तुम क्यों थमते हो छोड़ दो अब ये टांग खिंचाई करना तुम क्यों  किसी से जलते हो।। आवश्यकता से अधिक क्यों बोलते हो बेवजह बड़बोले क्यों बनते हो सीख लो भानु से खामोशियों का हुनर खुद से खुद तुम कब मिलते हो।।          भानुजा शर्मा

" राधे के चरणों मे गुजारा करुं मैं"

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क्या लिखूं... क्या वर्णन करूं मैं तुम्हारे सरूप का क्या चित्रण करूं मैं तुम्हारे चरण दर्शन मात्र से छलक जाती हैं आंखें मेरी इसके बाद क्या दर्शन करूं मैं।। माखन से भी कोमल है चरण तुम्हारे उन पर लगी महावर का क्या वर्णन करूं मैं तुम्हारे चरणों में सोए नूपुरों की छवि को निहारा करूं मैं ख्वाबों में भी सोचती हूं अक्सर....किस तरह भानु  राधे के चरणों में गुजारा करूं मैं।।                               भानुजा शर्मा

"मुरली"

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कान्हा याँ पहर ना बजाओ मुरली छोड़ आए हैं  हम काज को चूल्हे पर दूध रखो ,माखन बिलोय रहे हम आज तो सुन मुरली सुध बुध हम भूली, क्यों छेड़त ऐसे राग कौ मुस्कुराए रही किशोरी हमरि सुन तुम्हारी बात को अधर धरि अब किशोरी ने मुरली ,नचावत अब नंद के लाल को।।                             भानुजा शर्मा

"सही रास्ता"

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कोई तो मुझे समझा दे सही रास्ता क्योंकि खुद की उलझन अब मैं खुद हूं दुनिया की होड़ करूं मैं.. खुद की मंजिल खुद अकेले ही मैं तय करूं। किससे रखूं में अब वास्ता। कोई तो बता दे मुझे सही रास्ता।। चलती जा रही थी उस राह पर जहां और लोग चले थे खुद को ढूंढ पाई ना इस दुनिया की भीड़ में निकली हूं आज बरसों बाद खुद की ही तलाश में... तय करती जा रही हूं रास्ता बस मंजिल पाने की आस में. कोई तो बता दे मुझे आज किस से रखूँ वास्ता... जिस से में चुन पाऊ सही रास्ता।। नासमझ पागल सी हूँ मैं जानते हो तुम सब... खोई हूँ मेँ खुद में ये कब मानते है सब मेरी कस्ती के साथ लगा देते है लोग लहरों को और देखते है मैं डूबती हूं कब..... लोग रखते है भानु सिर्फ मतलब से वास्ता.. कोई मुझे भी बता दे सही रास्ता।।                                       भानुजा शर्मा

" तेरी रजा"

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कई बार देर रात तक जागती हूँ पर आशिक नही हूँ मेँ रात भर में रोती हूँ पर किसी के गम मारी नही हूँ मेँ                                    बहुत हुई अब तुम्हारी ये व्यंग भरी बाते......                 बस करो इनको अब सहने के काबिल नही हूँ मेँ।। कोई तो हो मुझे भी समझाने वाला... क्या इस के भी काबिल नही हूँ मेँ। मेँ खामोस रहू तो तकलीफ और बोलू तो खता.. मेरे खुदा अब तू ही बता क्या है इसकी वजह.. नही आती भानु  मुझे रास ये तेरी जिंदगी.... आखिर क्या है तेरी रजा।                   भानुजा शर्मा

"अच्छा नही लगता"

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दुनियां की भीड़ मे मुझे चलना अच्छा नही लगता। अलग आदतें है मेरी पर मुझे किसी से जलना अच्छा नही लगता।। सबको महारत हासिल है अपनी अपनी तालिमो मे.. इस बात पर तो घमंड करना अच्छा नही लगता।। आये होंगे वो दूसरे शहर से भलेही.... इस बात पर उन्हें बेगाना कहना हमे अच्छा नही लगता।। जो लगे है निरंतर वतन की सेवा मे... उन्हें पागल समझना हमे अच्छा नही लगता।। फर्क होगा भानु तुम्हारी और मेरी तालीम मे मगर इस बात पर हमारा वैर करना अच्छा नही लगता।।               भानुजा शर्मा🙏

"मन उदास है"

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आज मन थोड़ा उदास है,  सुख की लगी थोड़ी सी प्यास है। ऐसा नहीं कि झोली है खाली,  कुछ और पाने की अभी भी आस है।  भावों के तारों में रिश्ते अभी भी कसे हैं  मधुमय पल आज भी यादों में बसे हैं  पर फीकी लग रही आज ये मिठास है  आज मन फिर से उदास है।  जतन से भरे हैं जीवन के रंग सभी  अच्छे ही लगते थे कूची के ढंग सभी  वही तस्वीर आज आती नहीं रास है । आज मन थोड़ा उदास है।                           भानुजा शर्मा

"तलाश करे"

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जो मान बैठे है खुद को पतझड़ मौसम... आओ हम उनमें सावन की तलाश करें। हार गए है वो खुद ही खुद से..                              क्यों ना हम उनका प्रकाश बने।। वो मान बैठे हैं खुद को रेत जैसा.... आओ उनमें हम समुंदर की तलाश करें। बह रहे हैं जो हार के लहरों में...  क्यों ना उनको हम आज किनारा करें।। बैठे हैं पेड़ पर आज वो पक्षी की तरह.....                      हम  उनके आसमान की तलाश करें। बहुत हुआ भानु अब सब से लड़ना झगड़ना..... क्यों ना अब प्रेम से बात करें।।                          भानुजा शर्मा

" देर से जागा करते है"

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  आधी रात को जाने क्यों ये दिल घबराता है   कभी रुलाता तो कभी हँसता है।   समझ नही आती मुझे इस दिल की मर्जी भी   मेरा दिल मेरे दिमाक से अक्सर लड़ जाता है।।    अंधेरी रात में जब मुझे तेरा ख्याल आता है     तु ही बता क्या ख़्यालो मे जिया जाता है।     कह दो सोने दे अपने ख़्यालो से....     कैसे समझाऊं अब मेँ इन्हें की मेरे ख़्यालो मे वो आता     है।।     मेरे सपनों मे वो अक्सर आया जाया करते है     उनके मुस्कुराने पर हम शरमाया करते है।     उनको मुस्कुराता देखने के लिए ही भानु     हम देर से जागा करते है।                     भानुजा शर्मा     

"दहेज"

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शीर्षक को पढ़ कर अधिकतर लोगों के चेहरों पर प्रसन्नता होगी। तो इसके साथ ही कुछ चेहरे चिंता,तनाव,और दर्द मे खो जायेगे इस दहेज को मे दंश कहकर पुकारू तो इस मे कुछ गलत नही। जैसे की मैने अभी कहा की कुछ चेहरों पर प्रसन्नता होगी सर्वप्रथम हम उनकी ही बात करते है इन लोगों मे अधिकांश लोग सर्व सम्पन्न होते है इनके बेटे यदि हुए तो उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर ,या कोई व्यापारी बनाते है चाहे उन्हें पैसे के दम पर बनाये पर बनाते जरूर है जब उन्हीं बेटों के विवाह कि बारी आती है तो सबसे पहले बात होती है दहेज की। अरे भाई बात क्यों ना करे अपने बेटे का व्यापार जो करना हैं। इतने दिनों से पढ़ाया लिखाया योग्य बनाया वो पैसा भी तो वसूलना होता है बेटी वालों से...जितना योग्य बेटा उतना ही दहेज लेना जो होता है ,बेटा शिक्षक है तो मोटरसाईकल चलेगी और यदि बेटा डॉक्टर ,इंजिनीयर हुआ तो कार बिना काम ही नही चलेगा। ऐसे लोगों के उदाहरण मैने और आपने हमारे समाज मे काफी देखे होंगे।जैसे की बेटा पैदा हुआ है तो वो लोग जरूरत के समान तक नही खरीदते कह देते है बेटे की शादी मे आयेगा तो हम वैसे ही लेकर क्या करेगे। यदि इन्ही सम्पन्न परिवार वालों ...

" मेरे लिए तुम"

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क्या दुआएं करु मै तुम्हारे लिए.. मेरे लिए तुम खुद दुआ हो। जानते हो तुम बहुत बेरंग थी तुम बिन मेरे ये दुनिया... तुम आये तो मुझे लगा की होली का त्योहार हो तुम।। इस सूरज सी तपन भरी दुनिया मे जानते हो मेरे लिए तो चाँद हो तुम🌙 बहुत ख़ामोश सी रहती थी जानते थे ना तुम जब से देखा है तुम्हें लगता है जिंदगी के साज हो तुम।। वो हमारे अठखेली भरे पलों का... एक अहसास हो तुम।। जान हो तुम मेरी भानु ये अब जान जाओ ना तुम।।

" मुझसे उम्मीद"

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मुझसे क्यों उम्मीद तमीज की करते है। जबकि मेरे बड़े ही बतमीजी करते है।। मेरे सारे दोष गिनवाते है वो मुझे। तो खुद के दोष क्यों गौण रखते है।। अदब का लेहजा सिखाते है वो मुझे। जाने क्यों वो खुद अब बेअदब रहते है।। बड़ो की इज्जत करने की हिदायत देते है वो मुझे इस काम मे वो खुद जरा पीछे ही रहते है।। किस्से हरिश्चन्द के कहते है वो मुझे। खुद की बारी आये तो वो अक्सर मौन रहते है।। रूठना तो मुझे चाहिए क्यों कि नासमझ हूँ मेँ। जरा कभी गौर कीजियेगा मेरे अपने अब मुझ खफा से रहते है ख़ामोश हो जाती है  भानु अब अक्सर। उसके अपने अब झूठ बोलते है।।

"उड़ती पतंग"

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उड़ती पतंग सी थी वो उड़ रही वो आसमान मे ड़ोर अपनो के हाथो मे है  ये भूल गई थी वो।।😞 थमी खड़ी रही आसमान में ... अपने साथियों द्वारा काट दि गई वो।। ख़ामोश वो अक्सर रहती थी क्यों की सच बोलती थी वो।। घर था उसका बडा भलेही🏠 पर अक्सर कोना खोजती थी वो।।  जिसे पलकों मे पाला था कभी.. अब सबकी नजरों मे खटकती थी वो👀 रहती घर मे थी मत ना रख पाती कभी... छुपाये सारे सचो को ...बस परेशान रहती थी वो।। चाँद छुने की आरज़ू थी उनकी.... तो कोरे कागज पर चाँद उकेर लेती थी वो🎨🌙 नाम से सूरज हो भलेही भानु पर चाँद जैसी शीतलता रखती थी वो....⛄ दुःख बस इस बात का था बार बार क्यों  उसे याद दिलाया जाता की लड़की थी वो👗

"अजीब कशमकश"

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घर भी अब पराया सा लगता है जाने क्यों अब अपनापन भी खारा सा लगता है अब जिये भी तो कैसे हम ये जीना भी अब मजबूरी सा लगता है।। भरे पूरे घर में शुरू से रहते थे हम। अब जाने क्यों ये घर मकान सा लगता है।।   ख़ामोश ही तो रहती हु अक्सर अब में। लोगों को मेरा चुप रहना भी अब व्यंग सा लगता है।। देख कर सबको  मुस्कुराना जो पड़ता है किस से कहे ये मुस्कुराना भी अब मजबूरी सा लगता है।। कई दफा खाने की आदत थी ना मुझे । बिन खाये पेट भरा भरा सा लगता है।। कुछ तो मुझे ' भानु ' खुद मे बाकी रहने दो। हर बार मेरा ही झुकना अब बुरा सा लगता है।।                     भानुजा शर्मा

माँ

                        "    माँ   "               सर्वप्रथम मातृ दिवस की सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।  माँ ममता की सूरत है धरती पर भगवान की मूरत है सिर्फ एक दिन नही मेरे पास.... मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण उनको समर्पित है।। इस मातृ दिवस को मै आधुनिक मातृ दिवस कहना ज़्यादा पसन्द करुँगी।इस का कारण ये की आधुनिक काल से पहले की बात करे तो माताओं के लिए एक दिन निश्चित नही किया था सम्पूर्ण जीवन ही माता के चरणों मे समर्पित होता था। आधुनिक युग के लोग अपना पूरा जीवन अपनी माता के साथ  या उनकी सेवा ,देखभाल नही कर सकते इस लिए ही एक दिन सुनिश्चिय कर दिया गया जिससे माताओं को अपना प्रेम प्रगट कर सके। मेरा दृष्टिकोण यही कहता है हो सकता है अधिकतर लोग मेरी इस बात से सहमत ना भी हो किन्तु वो उनका दृष्टिकोण है। इस मातृ दिवस के अवसर पर बड़े से घरों मे छोटे से कमरे के एक कोने मे पड़ी वो माँ आज सबको याद आगई... याद भी क्यों ना आये तस्वीर जो साझा करनी थी...दुर्भा...

लिखने का शौक नही रहा

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लिखने का शौक नहीं रहा या दर्द हद से बड़ा है सवर गई है जिंदगी तुम्हारी या कतरा कतरा बिखर गया है। ना हँसने की उम्मीद ना रोने का दुःख बड़ा है थम सी गई हो मानो जिंदगी जैसे तुफा मे मेरा घर वीरान पड़ा है ना सुख की उम्मीद ना दुःख के आँसू है दिल अब खामोश है और भानु गला अब भरा भरा सा है🙏🏻                         भानुजा शर्मा