" किशोरी प्यारी"

 आयो वो पितांबर धारी
बांध के कमरिया कारी
 सुनियो मेरी राधा प्यारी
ये छलिया है मन को भारी।।

सखियन के याने वस्त्र चुराए
माखन तो यानी घरे घरे खाए
फोड़ी मटकीयाँ नित्य प्रति याने
तब से ये माखन चोर कहाये।।

होगो तू ब्रजराज कन्हैया
शासनेश्वरी  मेरी राधा प्यारी 
 सखिन मध्य बैठी किशोरी
तेरा ग्वालन को टोल भारी ।


विहरत राधाबल्लभ मनमोहन कुंजन में
कुंजन की शोभा न्यारी 
एक मुरली दोउ फूकत अधरसो
भूली भानुजा सुध बुध सारी

निरखत यह छवि भानु निरंतर
युगल छवि बलिहारी।।

भानुजा शर्मा

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