" विरह"

कृष्ण जन्म मथुरा चले गए तो सारा वृंदावन विरह व्याकुल था एक सखी ने किशोरी जू की वेदना देख कृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वापस वृंदावन आ जाओ और कहती है

जब से गए हो तुम मनमोहन
चैन ना मन को  पल भर को।
क्यों आवत नाही तुम मनमोहन
एसो का अपराध भयो हम सो।।

सुध बुध ना रही गोपियन की
रोवत है दिन-रात नको।
का हाल कहूं किशोरी को
जिन्हें ध्यान नहीं अपने तन को।।

अष्ट सखी सेवा में जिनकी
भूल गई अपने आँशू को।
प्रेम सरोवर बनो अश्रु सो
देखते ही मन होय दर्द सो।।

हटा दये नीले पुष्प बगिया सो
कारो तो हम देखत नाही
रह रह याद तुम्हारी आवै
यह प्राण तन से निकलत नाही।।

सब ही डाकिये भूले डगर कू
हम तक एक पहुंचना पायो।
का खत्म है गई तुम्हारी स्याही
जो एक खत हम तक ना आयो।।

भेजे ऊधो ज्ञान सिखाने
क्या प्रेम को ध्यान तनिक ना आयो
प्रेम से बड़ो ना ज्ञान  जगत को
यह तुम्हारी समझ ना आयो।।

का का वर्णन करु कन्हैया
 मैं अब बस पडु तुमरे पइया
अब कछु कह ना पाए भानुजा
लौटो अब वृंदावन माही  ।।







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