" मुझसे उम्मीद"
मुझसे क्यों उम्मीद तमीज की करते है।
जबकि मेरे बड़े ही बतमीजी करते है।।
मेरे सारे दोष गिनवाते है वो मुझे।
तो खुद के दोष क्यों गौण रखते है।।
अदब का लेहजा सिखाते है वो मुझे।
जाने क्यों वो खुद अब बेअदब रहते है।।
बड़ो की इज्जत करने की हिदायत देते है वो मुझे
इस काम मे वो खुद जरा पीछे ही रहते है।।
किस्से हरिश्चन्द के कहते है वो मुझे।
खुद की बारी आये तो वो अक्सर मौन रहते है।।
रूठना तो मुझे चाहिए क्यों कि नासमझ हूँ मेँ।
जरा कभी गौर कीजियेगा मेरे अपने अब मुझ खफा से रहते है
ख़ामोश हो जाती है भानु अब अक्सर।
उसके अपने अब झूठ बोलते है।।
Fascinating poem Bhanu
ReplyDeleteThank you Deepak
Deleteशानदार
ReplyDeleteधनयबाद
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