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Showing posts from December, 2020

माँ

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               "माँ"        कहने में छोटा है ना शब्द मां  पर मेरे लिए मेरी दुनिया हैं वो। भोर से साँझ तक लगी रहती हैं वो कामों में  दुखता है जब सर मेरा तब  दबाती हैं वो। बीमार जब होती हूं तो लोग दूर भागते हैं रात भर जाग कर मुझें संभालती हैं वो हारती हूं जब हिम्मत कुछ कर गुजरने की  मेरे कमजोर हौसलों में पंख लगाती है वो जमाना कहता है लड़की हूं मैं क्या कर लूंगी मुझे बेटी कहकर ही बड़े ख्वाब दिखाती हैं वो  जब कभी रोटी का  एक टुकड़ा बचता हैंना तब खुद भूखी रहकर मुझे खिलाती हैं वो अक्सर वो मुझसे कहती हैं उसकी जिंदगी हूं मैं पर उससे कैसे मैं कहूं कि मेरी दुनिया हैं वो। पूजती होगी दुनिया मंदिर और मजारों को मेरे लिए तो मंदिर की चौखट भी वो खुदा का दर भी वो।               भानुजा शर्मा✍️✍️✍️

लम्हें

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उन गुज़रे हुये लम्हों की कसक आज भी हैं तू कल मेरा था ,तू आज भी हैं तू सोचता हैं गुज़र जायेगी साल तू भूल जायेगा। उन पुराने लम्हों की ख़बर तो तुझें आज भी हैं। कुछ पुराने सपनें ले गया तो कुछ नये दे गया हैं याद तो कर तुझें हमसा हमसफ़र दे गया हैं। पूछतीं क्या हैं  भानु  तू ज़माने का अब पता.. तोहफ़े में वो मेरे श्याम का पता दे गया हैं।

गेरों से बात करते हैं

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जानती हूं कि वो मोहब्बत बेशुमार करते हैं  पर रात ढले वो गैरों से बात करते हैं।   जाने क्यों भूल बैठे हैं वो मिलन की बातें  वो मुझें देखकर भी अब अनदेखा करते हैं। मानती हूं कि वो गैरों के साथ रहते हैं नहीं जानती दिल से बग़ावत कैसे करते हैं। मुझें औरों से बात करता देख कभी अपना हक़ फिर क्यों जताया करते हैं।  

शौक रखते हैं

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वो अपने चेहरे पे नकाब रखते हैं मानाकि वो गुनाहों का हिसाब रखते हैं मयखाना हैं भानु उनकी आंखें हिज्र मैं भी वो साकी का शौक रखते हैं।  मैकदा छोड़कर जाऊं तो कहां जाऊं  वो अपनी आंखों में मैकदा भी रखते हैं सोहबत मैं मेरी रहकर भी वो बेबजह फ़जीहत का शौक रखते हैं। भानुजा शर्मा✍️✍️✍️

गीता सार

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कहते हैं कलयुग में श्रीकृष्ण का महात्म्य और बढ़ेगा। श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकली गीता में काफी सारे श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। दुनिया में सबसे अधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ गीता के श्लोक समुंदर से कुछ इस लोगों को देखते हैं। क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है। यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ (तृतीय अध्याय, श्लोक 21) अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।     गीता ज्ञान सिखाने को आए कृष्...

श्री राधा पुकारा करेंगे

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राधा श्री राधा पुकारा करेंगे बरसाने में हम गुजारा करेंगे  कभी तो दर्शन दोगी मेरी प्यारी   आस का दीपक जलाया करेंगे। श्री राधा श्री राधा पुकारा करेंगे बरसाने में हम गुजारा करगें चरण रज माँगे हम तो दुलारी तेरे चरणों में हम गुजारा करेंगे। श्री राधा श्री राधा पुकारा करेंगे बरसाने में हम गुजारा करगें  बरसाओगी जब तुम अपनी करुणा तन मन हम अपना भिगाया करेंगे। किशोरी के चरणों मे गुजारा करेंगे ब्रज गलियों में राधा राधा पुकारा करेंगे। भानुजा✍️✍️  

पीली चुनरियां

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 आज मैंने बगिया से पीली चुनरी चुरा के ओढ़ी   तो मन में प्रीत की पहेली हँसने लगी सोच सोच के मन में प्रियतम की आज गालों पे लाली मुझें खुद नजऱ आने लगी। पीली सी चुनरियां और हरे भरे लहँगे में मानों दुल्हन साजन को देख शरमानें लगी। दुल्हन के पास खड़ी हो छोटी छोटी बाला आज भविष्य के सपनों में जैसे खुद लहराने लगी।  रात में किया श्रृंगार चांद तारों ने सभी का आज इठलाके शवनम मोतियों का हार स्वयं लाने लगी। भानुजा✍️✍️✍️

तलाक़

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 पवित्र रिश्ते में बंधे हैं हम यह तो जानते हो ना   कशमकश में है ना हमारी जिंदगी.... हमारे रिश्ते की नाजुकता हो समझते हो ना।  चलो मान लिया तुम्हारी मेरी बनती नहीं  मेरी सोच अलग है ना तुमसे.....  छोटी सी बात भी तो तुम मेरी समझते नहीं। मैं चाहती हूं घर से निकलना थोड़ी सी आजादी घुट जाती हूं मैं भी घर में पर क्या करूं तुम बंदिश लगाए बिन मानते नहीं।  जन्मों का वादा किया था ना तुमने  क्या इस जन्म में हम दूर हो जाएंगे   क्या हमारी नियति में मिलकर बिछड़ना था  सुनो क्या वाकई तुम्हें मुझसे तलाक़ चाहिए।  जो  उलझन थी हमारे रिश्ते की एक बारी ही सही उनको बैठकर सुलझाते हैं ना। माना फैसला लिया हैं हम दोनों ने तलाक का इत्तेफाक से सिर्फ कहने में छोटा है 'तलाक़' सच कहती हूं यह हमारी जिंदगी बदल देगा। एक बार तो मुझें गले लगाकर समझो ना पत्नी के हक़ से नही दोस्त के हक़ से समझाओ ना भानुजा 'प्रिये'

होली

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 श्याम पिया ऐसी खेलों ना मोसे  होरी होरी हाँ होरी.... 1.पकड़ के बईयाँ.. मैं झकझोरी  श्याम पिया ऐसी खेलों ना मोसे  होरी। 2.सम्मुख आये पिचकारी मोहे मारी  करत कपोलन पे रोरी श्याम पिया ऐसी खेलों ना मोसे  होरी.....    

'गुज़री साल'

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                 कविता-गुज़री साल उन गुज़रे हुए लम्हों की कसक आज भी हैं तू कल मेरा था ,तू आज भी हैं। तू सोचता हैं गुज़र जायेगी साल मैं भूल जाऊँगी उन पुराने लम्हों की ख़बर तो मुझें आज भी हैं। कुछ पुराने सपनें ले गया तो कुछ नये दे गया हैं याद तो कर तुझें नटखट हमसफ़र दे गया हैं। पूछतीं क्या हैं   भानु  तू ज़माने का अब पता.. तोहफ़े में वो मेरे श्याम का पता दे गया हैं। *कहते हैं लोग की चला गया हैं वो तुझसे दूर  तो ये अंदर फ़िर कौन रह गया हैं। आँखे बंद करू तो बंसी लेकर वो खड़ा हैं कौन कहता हैं चोर मेरे घर से खजाना ले गया हैं भानुजा शर्मा करौली(राजस्थान) ✍️✍️✍️✍️

फ़ाग

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बरस गयो अब फागुन आयो अब ना करो नादानी।  पल पल छिन छिन मैंने मनमोहन  या फाग की राह निहारी।  अबीर गुलाल संग लायो हैं कान्हा  रंगगली याने ने रंगडारी।  मांग भरो तुम हमरी मनमोहन  कहवत राधा प्यारी। अब कौ गया फागुन जाने कब आवैगो अब ना  भानु  करो नादानी।     भानुजा शर्मा✍️✍️

सुनता नही दिल

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सुनता नहीं दिल अब तो किसी की आदत सी हो गई है अब तो उसी की राहों में चलते राह देखे उसी की कमबख्त कहता है यह मंजिल उसी की  धूप छांव सी मोहब्बत है यह उसी की कहता है  सबसे भानु मैं हूं बस उसी की।             भानुजा ✍️✍️  

मन लाग्यो

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        "मन लाग्यो" ना मन लागत इस जग में अब  दर्शन दो राधा प्यारी।  कुंज गलीन में देखन जाऊं कहाँ बसी हो दुलारी। सेवा को अवसर मोहे दीजै तेरे शरण में हूँ प्यारी। शीश नवाऊँ मैं अंत काहै को मेरी स्वामिनी वृषभानु दुलारी ।  ब्रजराज हुँ तेरी करत चाकरी  अष्ट सखी सेवा में सारी। निशिदिन ध्यान धरो तुम जाकौ वो हैं तेेरे चरणन को पुजारी। रंग गलिन में खेलो फाग तुम  जहां प्रेम की बरखा न्यारी।  प्रेम बरखा में भीगे सगरे  मोहे काहे वंचित रखो दुलारी।   भानुजा शर्मा✍️✍️✍️        *कोई हठ कर बैठा हैं भीतर, जिसे बाहर का कुछ भाता ही नहीं।

" रातें"

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सिलवटें गिनते हैं अक्सर अब हम बंद कमरों में चाँद तारों से बातें कहाँ होती हैं। करवटें बदल कर निकलती हैं रातें मेरी सबके नसीब में चैन की नींद कहा होती हैं। बदलतें हैं आँखों के आगे मंज़र सभी वैसे भी हर मौसम में बहार कहाँ होती हैं। याद कर 'भान'पुराने उन लम्हों को आँखों से अश्कों की बरसात बहुत होती हैं। जो समझतें थे एक दूसरे की ख़ामोशी को कभी आजकल उन लोगों में तक़रार बहुत होती हैं।    भानुजा शर्मा 

खामोशियाँ

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सुनो ना सनम तुम रूह तक हो मेरे पर मन में जानें कितनों के हो। सपनें मेरे भी हैं तुम्हारे साथ जीने के पर तुम वादे में जाने कितनों के हो।  पूछते हैं मुझसे तेरे ही आशिक तेरी बातों को  सुनो तो क्या सिर्फ तुम बातों में ही मेरे हो। यहीं बात तो तुम मुझसे भी हर दफा कहते हो। कभी तो मुझ से सच कह दो तुम किसके हो।  कहने को तुम कहते हो मेरी खुशियां तुम से हैं सच सच कहो ना ये बात कितनों से कहते हो। ख़ुद को तेरी कहूं या तेरे आशिकों को तेरा तुम ही बता दो तुम खुद को किस2 का कहते हो। जमाना करता है मुझसे बातें अक्सर तेरी जमाने के आगे मुझ से तुम क्या कहते हो जब बैठा कर ले आये हो मुझें भी कश्ती में तो क्यों इन लहरों को ही साहिल कहते हों मुसाफिर होगा तेरी कश्ती का ये जमाना तो क्यों इस कश्ती को मेरे नाम कहते हो।       भानुजा शर्मा 'भान

" गुज़रे लम्हें"

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ऐ वक्त सुनो तुम ठहर जाओ ना चाहें मेरी ख्वाहिशों को दफना दो सुनो मेरे बीते लम्हों को लौटा दो ना। जब वो मेरा था उस पल को रोक लो ना उसके थामे हाथ को थमे रहने दो मुझे यूंही उसके साथ ज़िन्दगी जीने दो ना। चलो माना तुम समय हो बदल जाते हो ना तुम मुझे खुद में खुद को बाकी रहने दो  बदलते लोगों के व्यवहार को बदल जाने दो ना। सुनो ना 'भान' वो मुझे याद तो करते हैं ना उनकी यादों में ही मुझें कैद हो जाने दो। ऐ गुज़रे लम्हों मुझें भी अब गुज़र जाने दो ना। भानुजा शर्मा✍️✍️

पिया के बिन जोगन बनी थीं

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देख मोहे मेरे पिया नजरें क्यों फेरे मैं मुस्काऊ पिया तिरछें ही देखें।  सजी  सबरी सी मैं रह गई दुल्हन   तेरे बिना पिया बन गई जोगन बाबुल घर छोड़ संग आई  पिया मन में तनिक ना भाई। देख मुख मेरे पिया मुख से ना बोले खुली किवरियां ,...सब सच बोले   मेहंदी पर मेरे आँसूअन की बेला महावर भी मेरी हंसने लगी थी।  आंखों में थे मेरे मोती गर्दन झुकी थी  ना जाने क्यों पिया की नज़र ना पड़ी थीं पिया के बिन  मैं जब जोगन बनी थीं  गठबंधन की चुनर उलझी पड़ी थीं