" रातें"
सिलवटें गिनते हैं अक्सर अब हम
बंद कमरों में चाँद तारों से बातें कहाँ होती हैं।
करवटें बदल कर निकलती हैं रातें मेरी
सबके नसीब में चैन की नींद कहा होती हैं।
बदलतें हैं आँखों के आगे मंज़र सभी
वैसे भी हर मौसम में बहार कहाँ होती हैं।
याद कर 'भान'पुराने उन लम्हों को
आँखों से अश्कों की बरसात बहुत होती हैं।
जो समझतें थे एक दूसरे की ख़ामोशी को कभी
आजकल उन लोगों में तक़रार बहुत होती हैं।
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