माँ

               "माँ"
     
 कहने में छोटा है ना शब्द मां
 पर मेरे लिए मेरी दुनिया हैं वो।

भोर से साँझ तक लगी रहती हैं वो कामों में
 दुखता है जब सर मेरा तब  दबाती हैं वो।

बीमार जब होती हूं तो लोग दूर भागते हैं
रात भर जाग कर मुझें संभालती हैं वो

हारती हूं जब हिम्मत कुछ कर गुजरने की
 मेरे कमजोर हौसलों में पंख लगाती है वो

जमाना कहता है लड़की हूं मैं क्या कर लूंगी
मुझे बेटी कहकर ही बड़े ख्वाब दिखाती हैं वो

 जब कभी रोटी का  एक टुकड़ा बचता हैंना
तब खुद भूखी रहकर मुझे खिलाती हैं वो

अक्सर वो मुझसे कहती हैं उसकी जिंदगी हूं मैं
पर उससे कैसे मैं कहूं कि मेरी दुनिया हैं वो।

पूजती होगी दुनिया मंदिर और मजारों को
मेरे लिए तो मंदिर की चौखट भी वो खुदा का दर भी वो।

              भानुजा शर्मा✍️✍️✍️

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