मन लाग्यो

        "मन लाग्यो"

ना मन लागत इस जग में अब
 दर्शन दो राधा प्यारी।
 कुंज गलीन में देखन जाऊं
कहाँ बसी हो दुलारी।

सेवा को अवसर मोहे दीजै
तेरे शरण में हूँ प्यारी।
शीश नवाऊँ मैं अंत काहै को
मेरी स्वामिनी वृषभानु दुलारी ।

 ब्रजराज हुँ तेरी करत चाकरी
 अष्ट सखी सेवा में सारी।
निशिदिन ध्यान धरो तुम जाकौ
वो हैं तेेरे चरणन को पुजारी।

रंग गलिन में खेलो फाग तुम
 जहां प्रेम की बरखा न्यारी।
 प्रेम बरखा में भीगे सगरे
 मोहे काहे वंचित रखो दुलारी।

 भानुजा शर्मा✍️✍️✍️       
*कोई हठ कर बैठा हैं भीतर,
जिसे बाहर का कुछ भाता ही नहीं।

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