'गुज़री साल'

                 कविता-गुज़री साल


उन गुज़रे हुए लम्हों की कसक आज भी हैं
तू कल मेरा था ,तू आज भी हैं।
तू सोचता हैं गुज़र जायेगी साल मैं भूल जाऊँगी
उन पुराने लम्हों की ख़बर तो मुझें आज भी हैं।

कुछ पुराने सपनें ले गया तो कुछ नये दे गया हैं
याद तो कर तुझें नटखट हमसफ़र दे गया हैं।
पूछतीं क्या हैं  भानु तू ज़माने का अब पता..
तोहफ़े में वो मेरे श्याम का पता दे गया हैं।

*कहते हैं लोग की चला गया हैं वो तुझसे दूर
 तो ये अंदर फ़िर कौन रह गया हैं।
आँखे बंद करू तो बंसी लेकर वो खड़ा हैं
कौन कहता हैं चोर मेरे घर से खजाना ले गया हैं

भानुजा शर्मा करौली(राजस्थान) ✍️✍️✍️✍️

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