गीता सार

कहते हैं कलयुग में श्रीकृष्ण का महात्म्य और बढ़ेगा। श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकली गीता में काफी सारे श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। दुनिया में सबसे अधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथ गीता के श्लोक समुंदर से कुछ इस लोगों को देखते हैं।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)


अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)


अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
  
 गीता ज्ञान सिखाने को
आए कृष्ण पाप मिटाने को।
 
सारथी बन अर्जुन के वो
आये महाभारत रचवाने को।
  
 द्रोपति चीर बढ़ाने को
 सत्य का साथ निभाने को।

 युद्ध भूमि में 'गीता सार'सुनाकर
  आये अर्जुन संताप मिटाने को।

 अब वापस आजाओ मनमोहन
 इस जग को राह दिखाने को।

अरदास करत हैं भानुजा तुमसे
आओ पाप मिटाने को।

    गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
         भानुजा शर्मा🙏🙏🙏

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