तलाक़
पवित्र रिश्ते में बंधे हैं हम यह तो जानते हो ना कशमकश में है ना हमारी जिंदगी....
हमारे रिश्ते की नाजुकता हो समझते हो ना।
चलो मान लिया तुम्हारी मेरी बनती नहीं
मेरी सोच अलग है ना तुमसे.....
छोटी सी बात भी तो तुम मेरी समझते नहीं।
मैं चाहती हूं घर से निकलना थोड़ी सी आजादी
घुट जाती हूं मैं भी घर में पर क्या करूं
तुम बंदिश लगाए बिन मानते नहीं।
जन्मों का वादा किया था ना तुमने
क्या इस जन्म में हम दूर हो जाएंगे
क्या हमारी नियति में मिलकर बिछड़ना था
सुनो क्या वाकई तुम्हें मुझसे तलाक़ चाहिए।
जो उलझन थी हमारे रिश्ते की
एक बारी ही सही उनको बैठकर सुलझाते हैं ना।
माना फैसला लिया हैं हम दोनों ने तलाक का
इत्तेफाक से सिर्फ कहने में छोटा है 'तलाक़'
सच कहती हूं यह हमारी जिंदगी बदल देगा।
एक बार तो मुझें गले लगाकर समझो ना
पत्नी के हक़ से नही दोस्त के हक़ से समझाओ ना
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