खामोशियाँ
सुनो ना सनम तुम रूह तक हो मेरे
पर मन में जानें कितनों के हो।
सपनें मेरे भी हैं तुम्हारे साथ जीने के
पर तुम वादे में जाने कितनों के हो।
पूछते हैं मुझसे तेरे ही आशिक तेरी बातों को
सुनो तो क्या सिर्फ तुम बातों में ही मेरे हो।
यहीं बात तो तुम मुझसे भी हर दफा कहते हो।
कभी तो मुझ से सच कह दो तुम किसके हो।
कहने को तुम कहते हो मेरी खुशियां तुम से हैं
सच सच कहो ना ये बात कितनों से कहते हो।
ख़ुद को तेरी कहूं या तेरे आशिकों को तेरा
तुम ही बता दो तुम खुद को किस2 का कहते हो।
जमाना करता है मुझसे बातें अक्सर तेरी
जमाने के आगे मुझ से तुम क्या कहते हो
जब बैठा कर ले आये हो मुझें भी कश्ती में
तो क्यों इन लहरों को ही साहिल कहते हों
मुसाफिर होगा तेरी कश्ती का ये जमाना
तो क्यों इस कश्ती को मेरे नाम कहते हो।
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