पीली चुनरियां
आज मैंने बगिया से पीली चुनरी चुरा के ओढ़ी
तो मन में प्रीत की पहेली हँसने लगी
सोच सोच के मन में प्रियतम की आज
गालों पे लाली मुझें खुद नजऱ आने लगी।
पीली सी चुनरियां और हरे भरे लहँगे में
मानों दुल्हन साजन को देख शरमानें लगी।
दुल्हन के पास खड़ी हो छोटी छोटी बाला आज
भविष्य के सपनों में जैसे खुद लहराने लगी।
रात में किया श्रृंगार चांद तारों ने सभी का आज
इठलाके शवनम मोतियों का हार स्वयं लाने लगी।
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