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Showing posts from July, 2020

" कलम"

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ना कागज पास है ना मेरी कलम साथ है ना जाने क्यों बस अधूरा सा एक अहसास है दुनिया की छोड़ो भानु अब अपने ना साथ है लड़खड़ाते है जब कदम मेरे धक्का देने पूरी बारात है।

" तीज सुहानी"

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आज तीज की घड़ी सुहानी झूले कान्हा संग ठकुरानी। पवन मंद और शीतल बहती बरसत है जहाँ रिमझिम पानी। कुंजन बिखरे आज पुष्प सारे पुष्पन मध्य राधामाधव हमारे सखिया निरख निरख हरषावे अपने प्रियतम को लाड लड़ावे  बैठी झूला पे राधा प्यारी झोटा देवत है गिरधारी। श्रीजी मोरी मन मन घबरावे मनमोहन मेरो मंद मंद मुस्कावे। झोटा होले देओ बनवारी मोये तो लगत हैं ड़र भारी। घबराओ ना राधा प्यारी तुम तो हो प्राण हमारी। देख दृश्य महादेव भी आये रूप सखी को वे धर आये। झूलन लगे युगल झूला पे झोटा को अब गोपेश्वर आए। बलिहारी  भानुजा छवि देखकर छवि बसाय मन मन मुस्काये।         भानुजा शर्मा📝📝

" चुप चुप से बैठे हैं"

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चुप चुप से बैठे हैं इन खामोश रातों में निहारत है चांद को तारों से बात करते हैं  सन्नाटे का साया है जुगनूओं की रात में देखकर सितारों को सुबह का इंतजार करते है पतझड़ के मौसम में भी सावन की आश करते हैं घिरे हुए है भानुजा नीर से फिर भी जल की तलाश करते हैं जमाने की भीड़ में खुद की तलाश करते हैं आज अपनों के बीच में अपनों की तलाश करते हैं   भानुजा शर्मा📝

"वफादार बहुत है"

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छोटी सी जिंदगी में तकलीफ बहुत हैं समुंदर तेरे किनारे बहुत हैं जहां भी जाये वहां मिलते हैं शायर लगता है दुनिया में बेवफा बहुत हैं उसके घर में रोशनी बहुत है टूटे चांद लटके बहुत हैं लगता है तोड़े है उससे ने हजारों दिल अश्कों के मोती में जगमगाहट बहुत है खेलते हैं वो अक्सर अब चांद तारों से लगता है पहले दिलों से खेले बहुत हैं रोता रहता है उसकी गली का हर एक आशिक लगता है वो भानुजा  बेदर्द बहुत है। सितम करके मुड़कर नहीं देखते वो अक्सर  कहने को जमाने में वो हमदर्द बहुत हैं  चकोर भी शरमा जाता है उनको देखकर सुना है वो खूबसूरत बहुत है। टहलने निकलते हैं वो जब सड़क पर सुना है उस रोड पर जाम लगते बहुत हैं  उस बेवफा की वफादारी के किस्से गाते हैं शायर कहलाने को जमाने में वो वफादार बहुत है।       भानुजा शर्मा📝📝

" पनघट पर"

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पनघट पर जावत नीर भरण को सुन मुरली धुन ढूंढू तुमको कहा छुपे हो नंद के लाला राह तकति तुम्हरी बृजबाला भरत नीर यमुना से तब मैं तुमको ही में खोजत हूँ बैठे मन मंदिर में मेरे फिर क्यों कुंजन में देखत हूँ डगर में श्याम तोहे बिलोकु लता पता सो पूछत जाऊ पतो बतावत श्रीजी चरणन में किशोरी से में अब अरज लगाऊ। दर्शन तो मोहे दीजो लाला तोहे छोड़ कही अंत ना जाऊ किशोरी के चरणन में झुककर अपनों मैं सर्वस्व लूटाऊ।।     भानुजा शर्मा📝📝

"आजा आजा री बरखा"

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आजा आजा री बरखा , हौले हौले से आजा आज तन मन को भीगा जा री बरखा मेरे कान्हा को मिलवा जा री बरखा चहूं और बदरिया छाई री बरखा कुंजन में आज चमाचम बिजली चमके बदरिया में श्याम दिखला जा री बरखा झूलत होंगे श्यामा श्याम आज कुंजन में किशोरी के चरनन को धूलवा जा री बरखा आज धीमे धीमे तू आ जा री बरखा किशोरी के चरणन में जल बन तु टपके चरणन में गिर अमृत बन जा री बरखा श्यामा श्याम के दर्शन करा जारी बरखा चन्द्रकला पर तु बूंद बन गिर जा चमकेगी तु तब सीप को मोती पवन चले तब घिर आ री बरखा  हां श्याम के मुख पर तेरी बूंदे चमकत है जैसे चंदा की किरणें प्रीतम के तन को भिगों जा री बरखा बनाकर बूंद कुंजन मे ले चल ... किशोरी के चरणन में गिरु बूंद बनके भानुजा को जीवन सफल करा जा री बरखा               भानुजा शर्मा🙏📝

" झूला आज कुंजन में"

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आयो सखी सावन आयो मौसम बड़ो सुहावन आयो श्री जी आज कुँज गई है पीछे श्रीजी के माधव आयो। ललिता संग विशाखा आई फूलन की भर टोकरीयाँ लाई ड़ारो हैं अमियाँ की ड़ारी पे झूला रेशम की यामे डोरी लगाई। कान्हा कारी कामर बांध के आयो मोर मुकुट याने शीश सजायो किशोरी मोरी आज लहरिया में आई बेनि आज फूलन सो सजाई। बैठे युगल जब दोउ झूला पे शुभा इनकी वरन ना जाई चरनन के नुपुर छन छन बाजे चलत है तब मंद पुरवाई। झूला गीत गावन भानुजा सखी आई उपहार में काली जमुनिया लाई छुपाये रखो हैं माखन को लोदा माखन मिश्री युगल नें पाई।।       भानुजा शर्मा📝📝

"कान्हा की याद सतावत हैं"

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किशोरी मोये नंदलाला की याद आवत हैं प्यारी मेरे जियरा में चैन ना पावत हैं कैसे निकसु आज दरश करन कू ये बदरिया जल बरसावत हैं  गेल में घुटुअन घुटुअन जल भरो है  ये मन को समझ ना आवत हैं  मोये आज मोहन की याद सतावत है  प्यारी मेरो जियरा भर आवत है आँखन मूदूँ तो भानुजा लाला दिखे मोये चहु ओर वो ही नजर आवत है किशोरी तुम ही बन जाओ आज कन्हैया मेरो मन दर्शन कु भागत हैं किशोरी ने मोर मुकुट आज शीश धरो हैं  राधा प्यारी मुरली मधुर बजावत है ओढ़ो है  आज पीतांबर श्यामा जू वृषभान कु श्याम  रूप दिखावत है ललि झिनो कजरा लगावत है अधरन की लाली मन कु भावत है रूप देख बृषभान ललि को अब लला ही लला नजर आवत हैं  मोहे श्याम की याद सतावत है मेरे जियरा कु चैन ना आवत है रूप देखो जब श्रीजी को कीरत अब भानुजा भानुजा कू देखन जावत हैं     भानुजा शर्मा📝📝

"आज उनकी याद आई है"

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आज उनकी याद आई है आंखो से झलक ते आंसू और  संग मेरी तन्हाई है आज उनकी याद आई है कुछ मेरी और कुछ तेरी मिलकर जब अपनी बनती है ऐसी बातों को सुनने की लगता है बारी आयी है आज उनकी याद आई है अपना कहकर तुमने मुझको भानु बेगाना सा किया हैं लगता है मुझको अब  खुद मिलने की बारी आयी है आज उनकी याद आई है किसने मेरी साँसों को समहाला  किसने मेरी आहों को जाना है  शायद दिल के अरमानों को दफ़नाने की बारी आयी है आज उनकी याद आई है कौन हैं जिसने मेरे दिल के सारे दर्द दबा रखे हैं फिर से उन दर्दो के संग जीने की बारी आयी है आज उनकी याद आई है मेरी आँखों के पानी को नमक बनाने वाले हो तुम नमक बने जो पानी फिर से ऐसी किसने रीत बनायी है आज उनकी याद आई है भूल जाती हूँ कल की बातें बातें जो पुरानी हैं आज नया कुछ करने की ऐ दिल तेरी फिर से बारी आई है आज ' भानु'  फिर उनकी याद आई है       भानुजा शर्मा📝

" किशोरी जी और रुकमणी संवाद"

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सुन सुन राधे जू का वर्णन आज मन में लालसा जागी हैं सुंदरता का अभिमान लिए रानी ठकुरानी के दर्शन को जाती हैं।। द्वार पर ललिता सखी देखी रूप देव उन्हें श्रीजी समझ जाती है  मैं तो दासी हूँ कहती है ललिता सखी श्री जी निज कक्ष में बिराजी है आगे पहुंची जब रुक्मणी रानी विशाखा सखी देख चरण पड़ जाती हैं उठो रानी मैं स्वामिनी नहीं .... किशोरी अंदर शयन कक्ष में बिराजी है अचंभित हुई है द्वारिका की रानी सेवकाओ का रूप देख अहम भूल जाती है देख किशोरी का रूप रूक्मिणी श्री जी के चरणन में गिर जाती हैं हई वावरी निरख रूप को.... अब संसार को तुच्छ समझने लग जाती हैं  भेट करूं तो क्या करूं किशोरी अब खुद को समर्पण कर जाती है श्रीजी कहती तुम धन्य हो रानी हम शायद प्रेम करना नही जानती है तभी तो श्याम हमें छोड़कर आए  सुनते ही नाम कृष्ण को रोने लग जाती है रहते कृष्ण द्वारका में हैं किशोरी मन वो भानुजा  ब्रज में छोड़ आए हैं विरह में राधा राधा रटते हैं मोहन  और तब  स्वयं राधेश्याम बन जाते हैं             भानुजा शर्मा📝

" नियति "

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बहुत चीजें मैं बदल नहीं सकती मेरी नियति टल नहीं सकती। जो करेगा मेरा खुदा करेगा मेरे परेशान होने से ..... समस्याएं बदल नहीं सकती।। सदैव दुख तो मैं सह नहीं सकती इसलिए देता है खुशी मुझे मेरा खुदा।  रहती हूं मैं सदैव मौज में बिना समस्याएं आए तो मैं आगे कभी बढ़ नहीं सकती।।   उसके बिना ये दुनिया चल नहीं सकती नचाता है वो हमको कठपुतलियों की तरह उसके इशारे बिन तो हवा भी चल नहीं सकती। रहमत है उसकी जो दिन रात बरसती है उसकी कृपा के बिना भानु   रह नहीं सकती।।     भानुजा शर्मा📝

" गुरुदेव अन्तर्यामी हो"

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*घट घट वासी हो ,गुरुदेव अंतर्यामी हो सबरे जगत से न्यारे, गुरुदेव प्यारे कृपा करो हे करुणानिधि हम पर आई शरण तुम्हारी हूँ। नहीं जानती रीति नीति,ना ही विधि-विधान मुझे आता है। मुझे तो बस गुरु चरणों में शीश झुकाना भाता है।। भेंट स्वरूप क्या मैं लाऊं, यह भी समझ ना पाती हूं। सर्वस्व आप को सौंपा है खुद को अर्पण कर जाती हूं।। नेत्रों से नहीं रुक पाते अश्रु दर्शन जब ना कर पाती हूं।  मन मंदिर में बैठे आप हो मैं अंत फिर क्यों जाती हूं।। रूप निहारु श्री जी का  भानु , आपकी छवि मैं पाती हूं पुण्य किये होंगे कई जन्मों के मैने तब चरणारविन्द दर्शन पाती हूँ।।         भानुजा शर्मा📝

" वो मजदूर है"

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वो मजदूर है भाई मैने उसे मजदूरी करते देख है कड़ी धूप में तपता है वो मैने उसे पाषाण तोड़ते देखा है चंद रुपयों के लिए मजदूर को मैने बेज्जत होते देखा हैं  दो लोगो को छप्पन भोग जहां उसके द्वार पर भूखे बच्चों को देखा हैं खुद फ़टे पहनकर उसने बच्चों को नये कपडे दिलाते देखा हैं। बीमार वो भी होता है अक्सर फिर भी मैने उसे बच्चों का पेट भरते देखा है वो मजदूर है भाई.... मैने उसे दर दर भटकते देखा है वो मजबूर है मजबूरी में.... मैने उसे मजदूरी करते देखा है       भानुजा शर्मा📝📝 *1 मई अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक (मजदूर) दिवस