" पनघट पर"

पनघट पर जावत नीर भरण को
सुन मुरली धुन ढूंढू तुमको
कहा छुपे हो नंद के लाला
राह तकति तुम्हरी बृजबाला

भरत नीर यमुना से तब मैं
तुमको ही में खोजत हूँ
बैठे मन मंदिर में मेरे
फिर क्यों कुंजन में देखत हूँ

डगर में श्याम तोहे बिलोकु
लता पता सो पूछत जाऊ
पतो बतावत श्रीजी चरणन में
किशोरी से में अब अरज लगाऊ।

दर्शन तो मोहे दीजो लाला
तोहे छोड़ कही अंत ना जाऊ
किशोरी के चरणन में झुककर
अपनों मैं सर्वस्व लूटाऊ।।


   भानुजा शर्मा📝📝



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