किस से कहूं
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मन की बेचैनी किस से कहूं की आज मन में अजीब सी बेचैनी हैं ख़ुद के खो जाने की या कुछ ना भूल पाने की। सबको ख़ुश रखने में खुद के ना हँस पाने की देख कर ख़ुद को आईने में खुद की याद आने की। मोम जैसे उस शीतल मन के पिघल जाने की या मोम में लगे उस निर्दोष धागे के जल जाने की इस ज़माने की भीड़ से खुद को अलग कर पाने की खुद की पीडाओं में ख़ुद के लिए ख़ुद ना रो पाने की जानकर मतलबी दुनियां को फ़िर भी रिश्ते निभाने की जानता है मेरा नासमझ सा मन ये अजीब सी बेचैनी हैं जमाने की भीड़ में ख़ुद के गुम हो जाने की 'भानु' उस मन मुकुन्द परमात्मा को पाने की ये अजीब सी बैचनी हैं माधव तुम से ना मिल पाने की। भानुजा शर्मा करौली (राजस्थान)