मैं भोरी की भोरी
मैं भोरी की भोरी
जाऊँ कित तोहे छोड़ प्यारी तू ही सर्वस मोरी
ब्रजराज हु तेरी करत चाकरी देखत अखियाँ मोरी
चरनन जावक श्याम लगावत सकुचावत किशोरी
जित देखूं उत तू ही दीखत का खो गई सुध मोरी
भोरी देत अशीष प्रेम सुख 'भानुजा' झपकत पलक निगोड़ी
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