3.7.23 गुरुपूर्णिमा ।।।।।।👍

कितना टूट कर बेहिसाब हँसती हू
तेरी मेहरबानी से यह हुनर भी सीखी हू

कहते हैं लोग वो मुझे भूल गया हैं
देखा हैं मैंने उसे मेरा लिखा गीत गुनगुनाते हुए

मेरी ख़ामोशी.. और उसकी नजर आज भी वैसी है
बस खामोश हुए हैं तो उसके वो बोलते लव।

बहुत कुछ कहना चाहती हैं उसकी नजरें
उसे देख तभी ये आँखे बरसती हैं 

कांधे से गिरे मेरे हर एक दुपट्टे को
आज भी उसकी निगाहें सम्हाल देती हैं

मुझें देख आज भी उसका ठहर जाना
कौन कहता हैं वो आगे बढ़ गया हैं



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