अब दुख हिबड़े नाय समाए
जब ते गए तुम मदमोहन नैनन नींद कहा आये
उठ उठ रैन बाट जोबती कब मोहन द्वार बजाये
माखन मटकी टांग छीके कौन माखन कूँ खाये
साज श्रृंगार भूली सगरे कहा काजर लाली लगाये
सींचो हमनें प्रेम वृक्ष जो प्यारे काहे निवोरी खाये
राह तकत 'भानु' परसों की माधव बगद घर आये
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