अखियन सौ झर लागे
अखियन सौ झर लागे
बैरी सावन आए लगो मन नैनन नीर बहावे।
जग भीगे सावन बरसा तन अखियन तोय नहावे
मन जेठ दुपहरी तप्त भू जल सो किलोल मचावे
आग लगे ऐसे सावन मेरो श्याम धनी ना आवे
'भानु' माधव संग बिन प्यारी काहू मोहे ना सुहावे।।
भानुजा✍️✍️✍️✍️✍️
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