Posts

Showing posts from November, 2020

लला को नचावत प्यारी

Image
लला को नचावत प्यारी खेल ख़िलावत न्यारी वो बरसाने की कुंजन में   हैं धूम मचावन हारी। ऐसे नाचों बनवारी मैं सीखा सीखा के हारी। मुरली बजावत प्यारी और गावत हैं त्रिपुरारी। ये देखे सखियां प्यारी ये हँसी करेंगी न्यारी। तुम मानो बात हमारी अब छोड़ो जिद ये सारी। अब थामो मुरली तुम्हारी घर जावन दो बनवारी। भानुजा शर्मा✍️✍️

" मेरा नसीब"

Image
                 "नसीब था" **समंदर तेरे किनारे बहुत हैं छोटी सी ज़िन्दगी के हक़दार बहुत हैं जहाँ भी जाऊ वहाँ मिलती हैं नफ़रत कहने को मेरे अपने बहुत हैं।  ताउम्र फ़ैसला मैं लें ना सकी भानु... वो जो कहता था तेरा हूँ। क्या वो मेरा नसीब था। दफ़ना दिया था मुझे भी चांदी की कब्र में मैंने जिसे चाहा..... वो आशिक़ ग़रीब था। ख़ामोश होकर सहता हर दर्द को वो मेरे अश्क चुनकर वो रोता कहता ये मेरा रक़ीब था। बातों ही बातों में कट जाती  मेरी सूनी जिंदगी..... उसकी खामोसी का मगर क़िस्सा अजीब था। मिल ना सका था वो मुझे जो मेरे क़रीब था खोया मैंने उसे जिसके हाथों में मेरा नसीब था      भानुजा शर्मा✍️करौली(राजस्थान)

मेरी किस्मत

Image
क्यों मेरी क़िस्मत में सिर्फ रोना हैं क्या हर रिश्ते में मिलकर बिछड़ना हैं। उसके क़रीब होके भी ना होना हैं क्या इस तरह ही मुझे दर्द में रोना हैं। वो मेरे हैं उन्हें ना किसी का होना हैं फिर क्यों मेरे पास जाने पर उनका रोना हैं। मैं कुछ कहूं तो वो परेशान होते हैं मेरे बिन फिर क्यों सारी रात रोते हैं। मेरी दुनियां उनसे है वो कब समझते हैं उनकी दुनियां मैं हूं अक्सर सबसे कहते हैं।     भानुजा✍️✍️

"हमदर्द कहता हैं"

Image
*ये रिश्ते में चार वर्ष का आंकड़ा मुझे आज भी तकलीफ़ देता हैं मैं किसी के साथ भी रहूँ तुम्हारे दिए दर्द याद दिला देता हैं।  सीखा तो नही कही रूठने का हुनर तुमसे...... सुना हैं तुम तालीम बड़ी क़माल की देते हों। चलो मान लिया भूल भी जाये हम सारे गिले -शिक़वे सुना हैं मेरी मोहोब्बत को तुम एहसान कहते हों जानकर भी अनजान बनती हूँ अक़्सर कहते हो तुम... फ़िर क्यों तुम कुछ ना कहकर मुझे ख़ामोश कर देते हो। कहते हो अकेले ही सहन कर लूंगा  हर दर्द ख़ुद का..... तुम क्यों ख़ुद को इतना दर्द देते हो। मान बैठें हो तुम सितम करते हैं  हम तुम पर भानु.... फिर क्यों ज़माने में हमकों हमदर्द कहते हो।         भानुजा शर्मा✍️✍️

" ओस का मोती"

Image
सर्द रातों में फ़लक पर ओस की बूंद हो तुम। लगती हो तुम पानी जैसी हम कहते शबनम हो तुम। कभी लगती तुम सीप का मोती सच सच बोलो कौन हो तुम। अर्श से फ़र्श पर गिर के भी चाँदनी जैसी दिखती हो तुम। सिसकियाँ लेता होगा ये जहाँ सच कहूं तो पिघलती हो तुम। खेतों में लहराती नवविवाहिता पर मोतियों का श्रृंगार हो तुम। कुछ तुम उस जैसी हो शबनम दिखती कुछ हो हो कुछ तुम।     भानुजा शर्मा करौली (राजस्थान)

" नज़र आता हैं"

Image
जाने क्यों मुस्कान के बाद  दर्द आता हैं रोकने पर भी रुकता नज़र नहीं आता हैं। मिट्टी सा हैं दर्द मेरा पाषाणों से रोकने पर भी जाने क्यों बहता चला जाता हैं। आंसुओ को  बांधती हूं अक्सर मैं  मर्यादा की दीवार से जाने क्यों ये सब को भूल पिघलता चला जाता हैं। गुजरे बक्त के साथ भूल जायेंगे पुरानी बातों को ये सोच कर...  हर पल याद आता चला जाता हैं। समेट कर रख दी सारी यादें आज तहखाने में...... जाने क्यो भानु वो तहखाने का रास्ता बड़ा याद आता हैं। भानुजा शर्मा करौली( राजस्थान)

" अकेली मैं"

Image
दीप जलाती होगी दुनियां पर अपने मन को बुझाती हूँ मैं। सबकी बातें सुन सुनकर खुद ख़ामोश हो जाती हूँ मैं। अपनी पसंद को भूलकर अक्सर अपनों की पसंद में पसंद मिलती हूँ मैं। बहुत बातें करती थी मैं पहले जाने क्यों अक्सर ख़ामोश रहती हूँ मैं कोई तो कमी हैं जो अक्सर मुझे खलती हूँ उसी कमी की तलाश में हूँ मैं। तू मेरी कमी हैं या मेरी जरूरत 'भानु' ये आज भी सोचती रहती हूँ मैं।  भानुजा शर्मा 

" मेरा घर"

Image
मायके के घर में एक कमरा मेरा ना हो सका कैसे मैं उम्मीद रखूं की ससुराल में मेरा कमरा होगा। एक सपना था मेरा उनकी सारी यादों को सजा कर कमरे में रखूं। सच कहूँ इस बड़े से घर में एक कमरा ना रहा मेरा समेट कर सारी यादें फिर से बंद कर दी एक बस्ते में ये सोच कर शायद मेरे घर में एक कमरा होगा मेरा। मेरे एक सपने में एक सुनहेरा सपना देखा हैं मैंने ना मायके का ना ससुराल का खुद का एक घर होगा मेरा। मेरे घर में एक छोटा सा कमरा बनाऊँगी मेरा  जहाँ सजा कर रख पाऊँगी मैं सारी यादों को मेरी किताबें भी खुल कर हँस पाएंगी मेरे डायरी में लिखे मेरे अल्फाज खुल कर सास ले पाएंगे मेरे बिखरे पन्नो को ना कोई समेटेगा ना बंद करके रखनी पड़ेगी मुझे मेरी डायरियां क्यों कि वो घर ना ससुराल का होगा ना मायके का वो घर सिर्फ और सिर्फ मेरा होगा।

"जगमगाहट"

Image
दीप उत्सव के सुअवसर पर चहुँ ओर दीप नज़र आते हैं। जगमगाहट को देख आज उन बच्चों के चेहरे मुरझाते हैं। वो चुपके से ही दीये के तेल को ले जाते हैं। दीप छोटा ही सही.... वो अपने घर में भी जलाते हैं। पहन नये कपड़ो को हम इतराते नज़र आते हैं। वो फ़टे कपड़ो में भी... बादशाह नजर आते हैं। मिठाइयों का स्वाद जानते तक नहीं वो उस दिन गर्म रोटी को भी मजे से खाते हैं। वो गरीब है भानु .....कहाँ आमजन की तरह कहाँ दीवाली मनाते हैं। जले पटाकों को वो बीनकर बड़े ख़ुश नजर आते हैं। बच्चें ही तो हैं  साहब.. मन तो ललचाते हैं।      भानुजा शर्मा करौली(राजस्थान)
वो बक्त और था जब मैं खामोश रहू और तुम मेरी खामोसी पढ लो मैं कुछ ना बोलू ...... तुम आखों से समझ लो। आज सब कहते हुए भी तुम मुझे नही समझते

"शरद पूर्णिमा उत्सब"

Image
शरद पूर्णिमा की शरद रात्रि महोत्सब ब्रज में भारी है चाँद से कृष्ण हमारे हैं चाँदनी राधा प्यारी है। करत महारास माधव कुंज में सजी गोपीजन न्यारी है करत लता पुष्प बरखा आज शीतल पवन चलत प्यारी है। पधारी रास रशेस्वरी रासमंडल में दंडवत करत बनवारी है शृंगार करत माधव राधा को चरण सेवा में मंजरी गण सारी हैं। लियो स्वरूप युगल रास को गोपी बने तब त्रिपुरारी है नैनन की भाषा में कृष्ण बोले गोपीनाथ की छवि न्यारी है। शब्द ना सूझत रूप वर्णन को  वर्णन करन की ना सामर्थ म्हारी है देखे चरण जब किशोरी के भानु को सर्बसव बलिहारी है       भानुजा शर्मा