" मेरा नसीब"
"नसीब था"
**समंदर तेरे किनारे बहुत हैं
छोटी सी ज़िन्दगी के हक़दार बहुत हैं
जहाँ भी जाऊ वहाँ मिलती हैं नफ़रत
कहने को मेरे अपने बहुत हैं।
ताउम्र फ़ैसला मैं लें ना सकी भानु...
वो जो कहता था तेरा हूँ।
क्या वो मेरा नसीब था।
दफ़ना दिया था मुझे भी चांदी की कब्र में
मैंने जिसे चाहा.....
वो आशिक़ ग़रीब था।
ख़ामोश होकर सहता हर दर्द को वो
मेरे अश्क चुनकर वो रोता
कहता ये मेरा रक़ीब था।
बातों ही बातों में कट जाती
मेरी सूनी जिंदगी.....
उसकी खामोसी का मगर क़िस्सा अजीब था।
मिल ना सका था वो मुझे
जो मेरे क़रीब था
खोया मैंने उसे जिसके हाथों में मेरा नसीब था
Comments
Post a Comment