"हमदर्द कहता हैं"
*ये रिश्ते में चार वर्ष का आंकड़ा
मुझे आज भी तकलीफ़ देता हैं
मैं किसी के साथ भी रहूँ
तुम्हारे दिए दर्द याद दिला देता हैं।
सीखा तो नही कही रूठने का
हुनर तुमसे......
सुना हैं तुम तालीम बड़ी क़माल की देते हों।
चलो मान लिया भूल भी जाये हम
सारे गिले -शिक़वे
सुना हैं मेरी मोहोब्बत को तुम एहसान कहते हों
जानकर भी अनजान बनती हूँ
अक़्सर कहते हो तुम...
फ़िर क्यों तुम कुछ ना कहकर मुझे ख़ामोश कर देते हो।
कहते हो अकेले ही सहन कर लूंगा
हर दर्द ख़ुद का.....
तुम क्यों ख़ुद को इतना दर्द देते हो।
मान बैठें हो तुम सितम करते हैं
हम तुम पर भानु....
फिर क्यों ज़माने में हमकों हमदर्द कहते हो।
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