" अकेली मैं"

दीप जलाती होगी दुनियां
पर अपने मन को बुझाती हूँ मैं।

सबकी बातें सुन सुनकर
खुद ख़ामोश हो जाती हूँ मैं।

अपनी पसंद को भूलकर अक्सर
अपनों की पसंद में पसंद मिलती हूँ मैं।

बहुत बातें करती थी मैं पहले
जाने क्यों अक्सर ख़ामोश रहती हूँ मैं

कोई तो कमी हैं जो अक्सर मुझे खलती हूँ
उसी कमी की तलाश में हूँ मैं।

तू मेरी कमी हैं या मेरी जरूरत 'भानु'
ये आज भी सोचती रहती हूँ मैं।

 भानुजा शर्मा 

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