" ओस का मोती"

सर्द रातों में फ़लक पर
ओस की बूंद हो तुम।

लगती हो तुम पानी जैसी
हम कहते शबनम हो तुम।

कभी लगती तुम सीप का मोती
सच सच बोलो कौन हो तुम।

अर्श से फ़र्श पर गिर के भी
चाँदनी जैसी दिखती हो तुम।

सिसकियाँ लेता होगा ये जहाँ
सच कहूं तो पिघलती हो तुम।

खेतों में लहराती नवविवाहिता पर
मोतियों का श्रृंगार हो तुम।

कुछ तुम उस जैसी हो शबनम
दिखती कुछ हो हो कुछ तुम।


    भानुजा शर्मा करौली (राजस्थान)

Comments

Popular posts from this blog

आन मिलो सजना

" शासन"

अनकही बातें❣️