" नज़र आता हैं"

जाने क्यों मुस्कान के बाद 
दर्द आता हैं
रोकने पर भी
रुकता नज़र नहीं आता हैं।

मिट्टी सा हैं दर्द मेरा
पाषाणों से रोकने पर भी
जाने क्यों बहता
चला जाता हैं।

आंसुओ को  बांधती हूं
अक्सर मैं  मर्यादा की दीवार से
जाने क्यों ये सब को भूल
पिघलता चला जाता हैं।

गुजरे बक्त के साथ
भूल जायेंगे पुरानी बातों को
ये सोच कर...
 हर पल याद आता चला जाता हैं।

समेट कर रख दी सारी यादें
आज तहखाने में......
जाने क्यो भानु
वो तहखाने का रास्ता बड़ा याद आता हैं।


भानुजा शर्मा करौली( राजस्थान)

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