"जगमगाहट"

दीप उत्सव के सुअवसर पर
चहुँ ओर दीप नज़र आते हैं।
जगमगाहट को देख आज
उन बच्चों के चेहरे मुरझाते हैं।

वो चुपके से ही दीये के
तेल को ले जाते हैं।
दीप छोटा ही सही....
वो अपने घर में भी जलाते हैं।

पहन नये कपड़ो को हम
इतराते नज़र आते हैं।
वो फ़टे कपड़ो में भी...
बादशाह नजर आते हैं।

मिठाइयों का स्वाद जानते तक नहीं वो
उस दिन गर्म रोटी को भी मजे से खाते हैं।
वो गरीब है भानु .....कहाँ आमजन की
तरह कहाँ दीवाली मनाते हैं।

जले पटाकों को वो बीनकर
बड़े ख़ुश नजर आते हैं।
बच्चें ही तो हैं  साहब..
मन तो ललचाते हैं।

     भानुजा शर्मा करौली(राजस्थान)




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