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Showing posts from February, 2021

होली

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साबरों करत मोसे जोरी, कहवत हैं होरी हैं होरी मारग रोको मटकी फोड़ी पकर के बईया मैं झकझोरी मुख से बोले होरी हैं होरी......... मरजादा कछु राखत नाही भर के अंक गुलाल मले री कोरी चुनर मोरी रंगी री कहवत मुख सो होरी हैं होरी.......... मैं तो अकेली गई पनघट पे वो लायो ग्वाल की टोली घोलो रंग मोरी मटकी में मैं रंग में सगरी बोरी होरी है होरी...............   मनमोहन भानु मन में बसों हैं क्यों करत फिर जोरी....होरी हैं होरी साबरो करत मोसे जोरी होरी है होरी...... भानुजा शर्मा करौली(राजस्थान)

क़दम तन

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क़दम तन ठाड़े दोऊ बतरावे भीगत बसन तोहू मुस्कावे क़दम तन ठाड़े दोऊ बतरावे।। नैनन ही नैनन में बतियां करत हैं मन ही मन में दोनों हँसत हैं बैठत हैं दोऊ गलवैया डारे देखें मैंने क़दम तन बतराते।। शीतल शीतल पवन बहत हैं यमुना में बड़ी लहर उठत हैं। बदरी जैसे झूमत गावत क़दम तन प्यारे दोऊ बतरावत।। सुध बुध नाही की घन हैं बरसे एक दूजे में मगन वो कब से। ओढ़ चुनरियां श्रीजी की दोनों नैनन सो आज अमृत बरसे।। भानुजा✍️✍️

ख़ामोश

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मानती हूं ग़लती बडी हुई हैं मुझसे सच कहूँ तो हजारों खामियाँ हैं मुझमे बस कुछ अच्छा है मुझमें  वो हैं तुमसे मोहोब्बत मैं समझदार हूँ पर समझदारी दिखा नही पाती तुम्हें रुलाने के बाद में मना नहीं पाती बस खामोश होकर चुपके से रो लेती हूँ क्यों कि तुमसे मोहोब्बत हैं जब कभी बहुत सी बातें करनी होतीं हैं ना तो कुछ भी कह नही पाती उलझनों को अपनी सुलझा नही पाती। बस तुम्हारे आगे खामोश हो जाती हूं क्यों कि तुम से मोहोब्बत हैं मुझें खुद से नफ़रत होने लगतीं हैं जब मैं तुम्हें अपनी हरकतों से चुप करती हूँ सच कहूँ तो मैं फिर खूब रोती हूँ तुम्हें पास ना पाकर मर सी जाती हूं पर तुम्हें याद करती हूँ क्यों कि तुम से मोहोब्बत हैं भानु✍️

गीत

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हैं तुमसे मोहब्बत कितनी तुम जानते नहीं भरते हैं हम आहे तुम क्यों पहचानते नहीं।  राहों में मिल कर भी तुम क्यों मुस्काते नहीं  हैं तुमसे मोहब्बत कितनी तुम पहचानते नहीं  कहते हो हम दर्द हो मेरे दर्द क्यों बाँटते नहीं  भरते हैं हम आहे  तुम क्यों पहचानते नहीं  कहने से क्या होगा खामोशी पहचानते नहीं  हैं तुमसे मोहब्बत कितनी तुम क्यो जानते नहीं। भानुजा शर्मा

" बसंत गीत"

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          " बसंत गीत" आई आई रे बसंत की धूम चलो सखी अब कुंजन में कुंजन में ब्रज की कुंजन में.... 1.बागन से मेहंदी तुड़वावो काजर जैसी याहै पिसवावो देखो री लला कैसे रहे घूर चलो री सखी कुंजन में।। 2.बगियां देखत मन ना भरत हैं अमियाँ में केसों मोहर लगत हैं मोहन सरसों रो करत शृंगार  चलो री सखी कुंजन में..... 3.चुन चुन पुष्प लतन से लावो प्रिया प्रीतम को शृंगार करावो पीत बसन उड़ायौ नयार चलो री सखी कुंजन में... 4.अबीर गुलाल थोड़ो ही लावो किशोरी के चरणन में लगावो और कान्हा को देओ रंग में बोर चलो री सखी कुंजन में..... 5.श्याम श्यामा कौ लाड़ लडावो  चंदन चौकी ' भानुजा 'इन्हें बेठावो  फूलन में करो सर बोर चलो री सखी कुंजन में...... आई आई रे बसंत की झूम चलो री सखी कुंजन में......... भानुजा शर्मा 'भानुप्रिया' करौली(राजस्थान)

कान्हा

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माधव  ढूंढ़त फिरत अकुलाये कित हो मेरी राधा प्यारी,तुम कहाँ छिपी हो जाय कुंज निकुंज खोजत प्यारों,राधा राधा टेर लगाय ब्रज के हर कण कण में, नित्य प्यारी राधा समाय डाल डाल पात पात में,देखी प्यारी मुख भरमाय प्रियतम संग प्यारी जू विहरे,नित माधुर्य बरसाय।। भोर से साँझ भई तब मोहन, क़दम तन बैठजाय हिलमिल आई सखी सयानी,माधव को समझाय दर्शन तो तब होंगे कान्हा, चरण चापत रेनजाय बरसाने की गुजरिया प्यारी,साँझ से रेन भइजाय  करवादो दर्शन किशोरी के ,प्राण निकसे अबजाय आई जब राधा प्यारी,लाला चरण पकर हा खाय। भानुजा शर्मा

रात

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 रात की ख्वाहिशें बर्फ़ जैसी होती है सुबह होते ही शबनम बन पिघल जाती है

नजर से नजर मिली हैं

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            " राधा माधव" नजर से नजर जब से मिली है  फिर से दर्शन की प्यास लगी है दिन  सुहाने हो गए मोहन मेरे जब से श्याम की एक झलक मिली है आंखों में काजल झीना लगा है वो नैनों से बातें प्यारी लगी है  उठाकर नजरें जब देखता है मुझको तो यह दुनिया भी बैरन लगने लगी है मोर मुकुट कान्हा के शीश सजो है काठ की बंसी अधर धरो है मधुर मुसकावे मधुर बाजावे श्याम युगल सरुप में मनभावन लगो है। कूल से जब फूल किशोरी लेने लगी हैं यमुना भी चरण पखारन लगी हैं धन्य भाग्य  भानुजा  के आज राधे भानुजा का भानुजा चरणामृत लेने लगी है        भानुजा शर्मा  

"मेरे सवाल"

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                "   मेरे सवाल" सुबहा जागते ही सवाल क्या किया वबाल हो गया खुदने किये जो काम वो पुण्य हो गए हमने किये सिर्फ सवाल तो वो पाप हो गए।। अबतक की सारी मेरी खामियां तुम्हे याद हो गई और तुम्हारी क्यों बेहिसाब हो गई।। चुप थी मै बस मर्यादाओं की ख़ातिर वरना ये ना समझो मुझे सत्य का भान नही।। भोर से लेकर सांझ तक सिर्फ मेरे ही नुक्स पर क्या करे मेरी नुक्ताचीनी करने की आदत नही।।  मेरी पुरानी ख़ताओं को कुरेद करते है जिक्र वो कोई उनसे भी जाकर कह दे भानु भी बेजुवान नही।। भानुजा शर्मा करौली (राजस्थान)