कान्हा
माधव ढूंढ़त फिरत अकुलाये
कित हो मेरी राधा प्यारी,तुम कहाँ छिपी हो जाय
कुंज निकुंज खोजत प्यारों,राधा राधा टेर लगाय
ब्रज के हर कण कण में, नित्य प्यारी राधा समाय
डाल डाल पात पात में,देखी प्यारी मुख भरमाय
प्रियतम संग प्यारी जू विहरे,नित माधुर्य बरसाय।।
भोर से साँझ भई तब मोहन, क़दम तन बैठजाय
हिलमिल आई सखी सयानी,माधव को समझाय
दर्शन तो तब होंगे कान्हा, चरण चापत रेनजाय
बरसाने की गुजरिया प्यारी,साँझ से रेन भइजाय
करवादो दर्शन किशोरी के ,प्राण निकसे अबजाय
आई जब राधा प्यारी,लाला चरण पकर हा खाय।
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