ख़ामोश
मानती हूं ग़लती बडी हुई हैं मुझसे
सच कहूँ तो हजारों खामियाँ हैं मुझमे
बस कुछ अच्छा है मुझमें
वो हैं तुमसे मोहोब्बत
मैं समझदार हूँ पर समझदारी दिखा नही पाती
तुम्हें रुलाने के बाद में मना नहीं पाती
बस खामोश होकर चुपके से रो लेती हूँ
क्यों कि तुमसे मोहोब्बत हैं
जब कभी बहुत सी बातें करनी होतीं हैं ना
तो कुछ भी कह नही पाती
उलझनों को अपनी सुलझा नही पाती।
बस तुम्हारे आगे खामोश हो जाती हूं
क्यों कि तुम से मोहोब्बत हैं
मुझें खुद से नफ़रत होने लगतीं हैं
जब मैं तुम्हें अपनी हरकतों से चुप करती हूँ
सच कहूँ तो मैं फिर खूब रोती हूँ
तुम्हें पास ना पाकर मर सी जाती हूं
पर तुम्हें याद करती हूँ
क्यों कि तुम से मोहोब्बत हैं
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