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Showing posts from June, 2023
ठाकुर जी की कृपा से इस जन्म में जो पिता के रूप में मुझे प्राप्त हुए वो मेरे लिए किसी कृपा से कम नही हैं। मुझें पिता स्वरूप संतों का क्या कहूं या साक्षात ठाकुर जी का सानिध्य मिला वो मेरे पिता जी के कारण ही संभव हो पाया हैं मेरे जीवन में मेरे पिता एक आलौकिक शक्ति पुंज हैं उनके द्वारा मिली अमूल्य निधि का सिर्फ और सिर्फ अनुभव किया जा सकता हैं पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🙏❤️🙇

तेरे घर

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तेरे द्वार की चावी तो आज भी हैं मेरे पास..... जो ना मिल पाई थी वो थी तेरे मन की चावी। बहुत कुछ होगा तेरे घर मैं मेरा..... बस वहाँ नही होऊंगी तो सिर्फ मैं। लोग कहते हैं आज भी तेरा लहजा उस जैसा हैं कहती नहीं पर आज भी बाकी हैं तू मुझ में.... जीवन के गणित के हर अंक से घटा दिया हैं उसको  मैंने बस उसे जोड़ा हैं तो दुआ में.... भानुजा✍️

छाये रही अंधियारी

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बिखरी घनघोर घटा, छाए रही अंधियारी झूलत झूला दोऊ जन,चहु ओर सखियां सारी  शीतल भानुजा वहत जहाँ, हो अमुवा की डारी   कुसुम  गुच्छ लटके जैसे, सतरंगी चंद्र उजयारी रिमझिम बरसत बरखा,आज बूंद लगत कटारी भीगत बसन दोऊ जन के,उड़ावत  चुनरी प्यारी गुरुदेव कृपा बल निरखत यह छवि भानुजा बरसत नैंन कहा अब चैन गुरुदेव कृपा बलिहारी भानुजा ✍️✍️

मोहे करो व्रज बासी

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 किशोरी मोहे करो व्रजवासी काम क्रोध मोह लोभ हम फांसी जगत मोपे हँसे हम रोवत दिन राति रूखी सुखी खाऊ मधुकरी चाहे रहू मैं पियासी भोग छुड़ाओ सगरे जगत के बैठी रहूं रंग महल पासी भानुजा शर्मा

😥😥😥🙏🙏🙏

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सिकवा करूँगी ना शिक़ायत किसी से कहूंगी कभी तो तुझसे कहूंगी  ग़लत होती तो समझाता मुझको एक बात बता ये बदनामी कब तक सहूँगी जब दुआ देकर विदा कर दिया हैं उसको तो क्यों अब पलट के देखूंगी उसको शायद कुछ इल्जाम बाकी हैं अब भी तेरी दया से वो भी हँस कर सहूँगी कभी कहा नही की दुःख दे तू उसको मेरे हिस्से की खुशी भी दे दे तू उसको थोड़ा ही सही रहम कर मेरे मालिक मुझ पे दामन पर लगे झूठे दागों से बचा ले मुझको🙏

तेरी बात

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तेरी बातें भी तुझ सी फ़रेबी निकली जो सच थी वो तो मेरी निकली सच कह कर सुनाये थे जो क़िस्से सभी वो तो एक बड़ी पहेली निकली वो मेरा हैं वो मेरी हैं कहते थे ना अक़्सर तुम्हारी अपनी तो कोई तीसरी निकली बाँधा था जो फेरों के बक्त तुमने ग्रन्थि बंधन सुन फ़रेबी वो चुनर भी तो मेरी निकली लाऊंगा बारात तेरे दरवाज़े पे ये बात सच निकली ज़नाब पर यहाँ दुल्हन कोई दूसरी निकली

बदले नजर आते हो

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भूलना जितना भी चाहती हूँ मैं तुम्हें फिर क्यों तुम रह रह कर याद आते हो। आज भी निकलती हूँ मैं तुम्हारी ही गली से फिर क्यों तुम मुझे नजर नही आते हो। करते हो तुम अक्सर गैरो से मेरी ही बातें फिर क्यों मुझे देख वहाँ से चले आते हो। बात बात पर रुठ जाने की आदत थी तुम्हारी सुना हैं 'भानु 'अब बहुत बदले बदले नजर आते हो।       भानुजा शर्मा