छाये रही अंधियारी
बिखरी घनघोर घटा, छाए रही अंधियारी
झूलत झूला दोऊ जन,चहु ओर सखियां सारी
शीतल भानुजा वहत जहाँ, हो अमुवा की डारी
कुसुम गुच्छ लटके जैसे, सतरंगी चंद्र उजयारी
रिमझिम बरसत बरखा,आज बूंद लगत कटारी
भीगत बसन दोऊ जन के,उड़ावत चुनरी प्यारी
गुरुदेव कृपा बल निरखत यह छवि भानुजा
बरसत नैंन कहा अब चैन गुरुदेव कृपा बलिहारी
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