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Showing posts from March, 2024

सब कुछ

ये जो पिघल रहा है आंखों से यह तेरा जादू टोना है तेरी एक नज़र से लगता हैं मानो मन एक खिलौना हैं पिघल रहा जो आंखों से वहम जो तुमने मना है सदाये लू उस वहम की जिसने तुझे अपना माना है तुम्हें तलाश कहूं या ख्वाइश ,तलव मेरी  भानु ये जिंदगी जिंदगी नहीं है बिन तेरे। मंत्र जप वेद पाठ नहीं सीख पाई मैं मेरे सरकार ने तेरे लिए रोना सिखाया है। रोती रहूं मैं हर पल यूं ही फ़फ़त तू मेरे सामने तो आ। मुझे तेरे दीदार का रहम देखना है अब मेरी तलब का करम देखना हैं पूछते हो तुम जिंदगी क्या है खुद को देखा है कभी आईने में! तेरी एक नजर से तो सब हार बैठे हैं सोचती हूं नजरे मिली रहती तो क्या होता

दोज़

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सखी री आज दोज़ पूजन धड़ी आई बैठी "भान अली"ले सहचरी भानुजा निकट बैठाई का हित पूजी दोज़ तुम हमको देऊ समझाई अमर सुहाग रहें प्रिया जू चिर जीवो कृष्ण कन्हाई। बैठाये प्रिया प्रियतम चंदन चौकी दौज तिलक मन भाई भरी गोज दोउ मेवन सो अली करत नेह प्रीत लड़ाई। का भेंट चाहो तुम जीजी हमकों देओ बताई एकटक दर्शन करत रहू युगल को माँगत कृष्ण कन्हाई। गुरुदेव कृपा सो ये नेह प्रगटो संबंध दियो बनाई का कहू मेरे गुरुदेव कृपा को जुगल दिए मिलाई। "भान अली"

शायरी

लोग पूछते हैं कहाँ भटकती हैं नजरें तेरी कह देती हूँ अब ठिकाने पर हैं। बेनक़ाब चहरों पर भी  फ़ागुन में कई नकाब देखें हैं। मैं वहम में थी कि वो परेशान होगा देखती हू उसे मुस्कुराते हुए। ले लू बलाये मैं उनकी अपने ऊपर किसी का हो वो...पर मुझें महफ़ूज चाहिए। मिला के नजरे जाते कहाँ हो इस कैदी को अब उम्र कैद रहने दो। सुकून हैं मुझें तेरी निग़ाहों की कैद में सुनो...मुझें ताउम्र कैद रहने दो। सोचा था उसे मिल रंग लगाउंगी अबकी भी डाल दिया हैं उसकी यादों पर गुलाल। लोगों को कहो निकल गया है रँगने का त्योहार अब तो  अपने असली रंग में आये।

आन मिलो सजना

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अब की आन मिलो सजना तुम बिन सुनो मोरो फ़ागुन असूअन भीगें अंगना। देखत अखियां एक ही सपना अबके फ़ागुन संग मेरे सजना सग छोड़ मैं भीगूँ ,पी संग अंगना। सांची कहू अली हुरदंग ना सुहावे होरी के रंग मन ना भावे बाँट निहारत तोरी सजनी, जाये कहो ये पी के अंगना प्यारे'भान अली' की तनिक तो सोचो कब आओगे पाती लिख भेजों कैसे रहू श्यामा अब तुम बिन अंगना

रूठ

रूठे चाहें भाई वासे कछु ना भलाई एक तू ही हैं सहाई और कौन पास जाइए रूठे चाहे राजा वासे कछु ना काजा एक तू ही महाराजा और कौन को सराइये। रूठे चाहे शत्रु मित्र आठोंयाम एक तेरे चरनन के नेह को निभाइये ये जग सारा झूठा एक तू ही अनूठा रूठ जाए चाहें सारा जग एक तू ना रूठा चाहिए।

hori

बहते रहे ये आंसू यूं ही कभी तो तरस तोहे आवेगों  बैठी रहूँ मै द्वार पे तेरे... कभी तो प्यारों टेर लगावेगो निरखत रहू कहा भाग्य मेरे लालन कबहू ह्दय बीच समावेगों मन उमंग करहूं तोसे बतियां रमणा कबहूं तो जै दिन आवेगों चाव नही मोहे अधिक बोलन कौ 'भान अलि' देख कब मुसकावेगों जग की होरी मैं ना खेलूं... श्याम अपने रंग रंगावेगों