रूठ
रूठे चाहें भाई वासे कछु ना भलाई
एक तू ही हैं सहाई और कौन पास जाइए
रूठे चाहे राजा वासे कछु ना काजा
एक तू ही महाराजा और कौन को सराइये।
रूठे चाहे शत्रु मित्र आठोंयाम
एक तेरे चरनन के नेह को निभाइये
ये जग सारा झूठा एक तू ही अनूठा
रूठ जाए चाहें सारा जग एक तू ना रूठा चाहिए।
Comments
Post a Comment