शायरी
लोग पूछते हैं कहाँ भटकती हैं नजरें तेरी
कह देती हूँ अब ठिकाने पर हैं।
बेनक़ाब चहरों पर भी
फ़ागुन में कई नकाब देखें हैं।
मैं वहम में थी कि वो परेशान होगा
देखती हू उसे मुस्कुराते हुए।
ले लू बलाये मैं उनकी अपने ऊपर
किसी का हो वो...पर मुझें महफ़ूज चाहिए।
मिला के नजरे जाते कहाँ हो
इस कैदी को अब उम्र कैद रहने दो।
सुकून हैं मुझें तेरी निग़ाहों की कैद में
सुनो...मुझें ताउम्र कैद रहने दो।
सोचा था उसे मिल रंग लगाउंगी
अबकी भी डाल दिया हैं उसकी यादों पर गुलाल।
लोगों को कहो निकल गया है रँगने का त्योहार
अब तो अपने असली रंग में आये।
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