hori
बहते रहे ये आंसू यूं ही
कभी तो तरस तोहे आवेगों
बैठी रहूँ मै द्वार पे तेरे...
कभी तो प्यारों टेर लगावेगो
निरखत रहू कहा भाग्य मेरे
लालन कबहू ह्दय बीच समावेगों
मन उमंग करहूं तोसे बतियां
रमणा कबहूं तो जै दिन आवेगों
चाव नही मोहे अधिक बोलन कौ
'भान अलि' देख कब मुसकावेगों
जग की होरी मैं ना खेलूं...
श्याम अपने रंग रंगावेगों
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