Posts

Showing posts from April, 2021

एक परदेसी प्रियतम अपनी प्रियसी को अपने देश छोड़ बरसों तक लौट के नही आता।

Image
कब तक राह निहारु प्रीतम काहे मोहे लेने ना आए। कछु दिनन की कह गए साजन लौट अवहु ना आए।। 1.डाकिया मैंने दिन दिन रोके खत एकहू  ना लाये। का हाथन में लगी हैं मेहंदी  खत जो लिख ना पाये।। 2.तुम बिन सुनो मेरो सावन काहे तुम समझ ना पाए। बिन मौसम के झरे ये नैना विरह सींच ना पाये।। 3.भोर भए तुम आओगे बालम फिर क्यों लौट ना आए। मेरे जीवन में अंधियारी तुम भोर काहे ना लाए।। 4.साज शृंगार लगे सब फ़िको तुम जो निरख ना पाए। सो गए मेरे पायल के घुघरू जो तुम बिन बज ना पाये।। 5.सुनहरे केशो में बालम अब तो चांदी आये। दोष ना देना मेरे यौवन को ये विरह सह ना पाये।। 6.हँसी करेंगी  भानु  संग सहेली जो तुम लौट ना आये। कब तक राह निहारु प्रीतम काहे मोहे लेने ना आए।। भानुजा ✍️✍️
जानकी के प्यारे हो, राम के दुलारे हो काज सब देवन के तुम ही सवारे हो। अंजनी के प्राण, पवन सुत न्यारे हो संकट में जीवन नाथ,तुम ही रखवारे हो 🌹💐राम के दुलारे ,संकट मोचन हमारे अंजनी सुत हनुमान के जन्मोत्सव की अनंत बधाइयां एवं शुभकामनाएं।💐🌸🌹🌹🌹🙏 भानुजा शर्मा🙏🙏🙏✍️✍️

"अजीब सी बेचैनी"

Image
    " अपनी तलाश मन में एक अजीब सी बेचैनी है खुद के गुम हो जाने की अपनों के बीच अपनापन पाने की जो बनते हैं ना मेरे अपने उनको आईना दिखाने की जो गुरूर में रखते हैं सर ऊँचा अपना उनको हकीकत से रूबरू कराने की खोई हूं कहीं खुद ही खुद में बस दुआ है तो खुद के मिल जाने की एक अजीब सी बेचैनी है खुद को खुद में पाने की   भानु  अपना वजूद बचाने की। भानुजा शर्मा🙏✍️

"महसूस हुई"

Image
ये हवाएं बरसों बाद महसूस हुई शायद तेरी मौजूदगी मुकम्मल हुई। करनी थी मुझे जो कुछ अधूरी बातें पर गैरों से तेरी बातें ना पूरी हुई।। बुलाया था तूने चाँद को खिड़की पे बातें तेरी फ़िर भी तारों से हुई। आदत नही गई तेरी बेबफाई की नज़र कलियों पे बातें फूलों से हुई।। कभी तो कर तू खुद से मेरी बातें तेरी होकर भी तुझे तेरी ना महसूस हुई। जो तू अर्श से फरस तक की करता हैं बातें क्या भानु  कभी आँखों की नमी महसूूूस हुई।। भानुजा ✍️✍️

धरा की अनकही बातें आसमाँ से

हम तुम ऐसे मिले जैसे आसमाँ तू मेरा हो तेरे पांव की जमीन जैसे मैं बन रह गई। तुमने हैं समेटा चांद तारों को अपने संग मैं कष्ट सहकर धरा बनी रह गई। तुम्हारी दी वेदनाओं को मैं हँसकर सहती रही इतने बड़े आसमाँ का मैं दरिया बन रह गई। मेरा प्रेम मुझसे सींच मुझ पे ही लुटाते हो मेरा मुझको देना था तो लेकर क्यों जाते हो।

एक खत

Image
कोरोना से पीड़ित एक बेटी का खत उसके पिता के लिए। कहती थी ना पापा वक्त बिता लिया करो मेरे साथ एक दिन मै चली जाऊंगी..... अभी बचपन भी तो जीना था मुझे क्या पापा मैं बचपन जिये बिना ही रुखसत हो जाऊंगी। मेरा हंसना, घर के आंगन में खेलना ,सबसे लड़ना झगड़ना क्या मैं अब ना कर पाऊंगी... बहुत मन करता है पापा मेरा सब से मिलने का देखने का, वापस घर आने का क्या पापा मैं सच में  सब को छोड़ कर चली जाऊंगी। क्या अब  वापस घर ना आ पाऊंगी। परीक्षा भी तो आने वाली थी ना पापा मेरी क्या अब वो  भी ना दे पाऊंगी सब कहते हैं मुझे कोरोना हुआ हैं पापा क्या पापा मैं जीने से पहले ही मर जाऊंगी। भानुजा✍️