एक परदेसी प्रियतम अपनी प्रियसी को अपने देश छोड़ बरसों तक लौट के नही आता।
कब तक राह निहारु प्रीतम काहे मोहे लेने ना आए। कछु दिनन की कह गए साजन लौट अवहु ना आए।। 1.डाकिया मैंने दिन दिन रोके खत एकहू ना लाये। का हाथन में लगी हैं मेहंदी खत जो लिख ना पाये।। 2.तुम बिन सुनो मेरो सावन काहे तुम समझ ना पाए। बिन मौसम के झरे ये नैना विरह सींच ना पाये।। 3.भोर भए तुम आओगे बालम फिर क्यों लौट ना आए। मेरे जीवन में अंधियारी तुम भोर काहे ना लाए।। 4.साज शृंगार लगे सब फ़िको तुम जो निरख ना पाए। सो गए मेरे पायल के घुघरू जो तुम बिन बज ना पाये।। 5.सुनहरे केशो में बालम अब तो चांदी आये। दोष ना देना मेरे यौवन को ये विरह सह ना पाये।। 6.हँसी करेंगी भानु संग सहेली जो तुम लौट ना आये। कब तक राह निहारु प्रीतम काहे मोहे लेने ना आए।। भानुजा ✍️✍️