धरा की अनकही बातें आसमाँ से

हम तुम ऐसे मिले जैसे आसमाँ तू मेरा हो
तेरे पांव की जमीन जैसे मैं बन रह गई।

तुमने हैं समेटा चांद तारों को अपने संग
मैं कष्ट सहकर धरा बनी रह गई।

तुम्हारी दी वेदनाओं को मैं हँसकर सहती रही
इतने बड़े आसमाँ का मैं दरिया बन रह गई।

मेरा प्रेम मुझसे सींच मुझ पे ही लुटाते हो
मेरा मुझको देना था तो लेकर क्यों जाते हो।



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