"महसूस हुई"
ये हवाएं बरसों बाद महसूस हुई
शायद तेरी मौजूदगी मुकम्मल हुई।
करनी थी मुझे जो कुछ अधूरी बातें
पर गैरों से तेरी बातें ना पूरी हुई।।
बुलाया था तूने चाँद को खिड़की पे
बातें तेरी फ़िर भी तारों से हुई।
आदत नही गई तेरी बेबफाई की
नज़र कलियों पे बातें फूलों से हुई।।
कभी तो कर तू खुद से मेरी बातें
तेरी होकर भी तुझे तेरी ना महसूस हुई।
जो तू अर्श से फरस तक की करता हैं बातें
क्या भानु कभी आँखों की नमी महसूूूस हुई।।
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