एक खत
कोरोना से पीड़ित एक बेटी का खत उसके पिता के लिए।
कहती थी ना पापा वक्त बिता लिया करो मेरे साथ एक दिन मै चली जाऊंगी.....
अभी बचपन भी तो जीना था मुझे
क्या पापा मैं बचपन जिये बिना ही रुखसत हो जाऊंगी।
मेरा हंसना, घर के आंगन में खेलना ,सबसे लड़ना झगड़ना क्या मैं अब ना कर पाऊंगी...
बहुत मन करता है पापा मेरा सब से मिलने का देखने का, वापस घर आने का
क्या पापा मैं सच में सब को छोड़ कर चली जाऊंगी।
क्या अब वापस घर ना आ पाऊंगी।
परीक्षा भी तो आने वाली थी ना पापा मेरी
क्या अब वो भी ना दे पाऊंगी
सब कहते हैं मुझे कोरोना हुआ हैं पापा
क्या पापा मैं जीने से पहले ही मर जाऊंगी।
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