दर्द देने लगा हैं

वो भी अब हंसकर के मजा लेने लगा है
 जो दर्द समझता था वो भी दर्द देने लगा है

फर्क नहीं पड़ता उसको मेरे हालातो से
मेरे पीठ पीछे अब वो कही और गुफ़्तगू करने लगा है

नहीं छूटा एक भी रोज मरजा का काम उसका
यहाँ तो जीवन मेरा बिखरा बिखरा रहने लगा हैं

फर्क नहीं पड़ता अब उसको मेरे रोने से
सुना हैं वो खिलखिला कर हँसने लगा है।

मुझे वहम मैं रखने को परेशान हूं यह कहता हैं अक़्सर
वो अपनी प्रेमिका के संग अब शहर मे घूमने लगा हैं




.

Comments

Popular posts from this blog

आन मिलो सजना

" शासन"

अनकही बातें❣️