मन मेरा
सोचा ना था ऐसा भी दिन आयेगा
सामने बैठा होगा वो मेरे...
पर वो ना मुस्कुराएगा।
मेरा दर्द मेरी बेबसी एक दिन ख़ामोशी में उतर जायेगी
ज़माने के आगे हँस दूंगी खिलखिला कर...
ये दर्द रात के अंधेरे में आंखों से निकल जाएगा
करने को बातें बहुत होंगी मुझ पर
पर ये मन ख़ामोश ...रहना चाहेगा
कुरेदें जायेगे दफ़न किये क़िस्से भी..सच कहती हूं तू बेन्तिहा याद आयेगा।
सोचा ना था कि वो इतना बदल जाएगा
खुद की खामियां भी मेरे सर इस तरह डाल जाएगा
तू खुश रहे... मान ली ख़ताये मेरी है
सुन खुदगर्ज अब तेरे पास कभी ना आया जाएगा
उसकी हरकतों से पत्थर हो चुकी होंगी मैं भी
फिर चाहें रो कर ही सही मुझें कितना भी पिघलायेगा।
टूट भले ही जाऊंगी... यह मन अब मॉम न बन पाएगा।
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