सखी मनोरथ
सखी मनोरथ भीगत देखत छवि प्यारी
गौरांगी श्यामा पहन वदन पीली सारी
चंद्रका धरि बूंद जल लगत मोतियन सो न्यारी
केशन सो जल टपकत ऐसे भीगत श्याम बिहारी
कसत कंचुकी भिगत जो जो होवत प्रियतम बलिहारी
कुसुम सेज दोउ विलसत ऐसे कबहु ना मिले पिय प्यारी
स्वेद बूंद कपोलन दमकत मानो लगत चंद्र कटारी
बने रहे सदा नव दूल्हा दुल्हिन करत रहे केली सुखकारी
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